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गोरा

२४२] गोरा दम भरमें अपने साथी परान घोषालको बुला कर उसे वकीलकी फीसके लिये कुछ रुपये देकर, उसी समय गोराके पास खाना कर दिया, और उधर अाप भी श्राफिसमे जाकर यह निश्चय कर लिया कि साहबसे छूट्टी मांगेंगे; अगर साइबने छुट्टी और वीवाने अनुमति दे दी, तो वहाँ जायगे । श्रानन्दमयी भी जानती थी कि महिम गोराके लिए कुछ किये बिना बैटा नहीं रह सकता । महिमके यथासम्भव प्रबन्ध करनेकी बात सुनकर वह अपना कोटरीको लौट गई। यह स्पष्ट ही जानती थी कि गोरा जहाँ पर है, उस अपरिचित स्थानमें, इस संकटके समयमें उन्हें साथ लेकर जाने वाला आदमी इस परिवार में कोई नहीं है। वह हृदयकी ज्ञान पीडाको मन ही मन सहनकर चुप होकर बैठ रहीं। लछमिनिया जव हाय हाय करके रोने लगी तब उसको इपट कर दूसरी दालानमें भेज दिया। सो इसको चुपचाप सहन कर लनाही उनका सदाका अभ्यास था । सुख और दुःख, दोनों हीका वह शान्त नावस ग्रहण करती थीं। उनके हृदयका दुःख और काट केवल अन्तयामी ही जानते थे! विनय सोचकर ठीक न कर सका कि वह प्रानन्द नयी, से क्या कहे। किन्तु आनन्दमयी किसीक सान्त्वना वाक्योंकी कुछ अपेक्षा नहीं रखती थीं। जिस दुःख का कोई प्रतिकार नहीं है उस दुःखका अन्य कोई आदमी अगर उसके साथ अालोचना या चर्चा करने आता था तो उनकी प्रकृति संकुचित सी हो उठती थी। उन्होंने और कोई बात उठने देनेका अवसर न देकर विनयसे कहा- बिन, देख पड़ता है, अभी तक तुम नहाए नहीं हो जात्रो जल्द नहा लो बहुत देर गई है। विनय स्नान करके जब भोजन करने कैा तब उसके पास गोराका स्थान शून्य देवकर आनन्दमयीका हृदय हाहाकार कर उठा । गोराको आज जेलका अन्न खाना पड़ रहा होगा । यह सोचकर कि वह अन्न निर्मम शासनके द्वारा कटु है, माताकी सेवा और स्नेहके मेलसे मधुर नहीं है, अानन्दमयी को भी कोई बहाना करके वहाँसे उठ जाना पड़ा। 1