पृष्ठ:गोरा.pdf/२४३

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। परेश वाबू घर आकर ललिताको देखते ही समझ गये कि वह उद्दण्ड लड़की जरूर कोई अनोखी वातकरके वहाँस आई है। जिज्ञासा-भरी दृष्टि से उनके मुंहकी ओर देखते ही वह बोल उठी-वाबूजी, मैं चली आई हूँ,! किसी तरह वहाँ नहीं रह सकी। परेश बाबूने पूछा-क्यों चली बाई ? क्या हुअा ? ललिता ने कहा-~-गोरा वाबू को मजिस्ट्रेटने कैदकी सजा दी है। गोरा इसके बीच में कहाँसे अापड़ा, कैसे उसे जेल हुआ, यह परेशबाबू कुछ न समझ सके । ललितासे सब समाचार सुनकर कुछ देर तक वे दुखी होते रहे । उसके बाद गोराको माँकी बात:सांचकर उनका चित और भी दुखी हुया । वे मन ही मन सोचने लगे के चोरको जो दण्ड देना चाहिये था, वहीं दण्ड गोरा के भी देना नजिन्हें के लिए सर्वथा धर्म विरुद्ध कार्य हुआ है । ननु के प्रति मनुष्यका अनि साधन संसार की और सव हिंसायांस कितना भयानक है, यह कहा नहीं जा सकता । उसके पीछे समाजकी शक्ति और राजाकी शक्तिने एक साथ मिलकर उसे कैसा भयानक कर दिया है, यह दृश्य गोरा के कारागार की बात नुनकर उनकी आँखोंके सामने प्रत्यक्ष हो गया। परेश वाबूको इस प्रकार चुन हो सोचते देख ललिता उत्साहित होकर बोल उठी-अच्छा, बाबू जी, आप ही कहिए क्या यह घोर अन्याय नहीं है ? परेश बाबूने अपने स्वाभाविक शान्त मावसे कहा---गोरा ने कत्र क्या किया है, यह हम ठीक नहीं जानते । हां, इतना कह सकते हैं गौरा अपनी कर्तव्य बुद्धिको प्रबलताके झोंके में आकर सहसा अपने अधिकारकी सीमा पार कर सकता है। किन्तु अंगरेजी भाषामें जिसको क्राइम (जुर्म) कहते हैं २४३