पृष्ठ:गोरा.pdf/२४६

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२४६ ]
गोरा

२४६ ] गोरा देर तक वात-चीतकी, किन्तु ललिताके साथ स्टीमर पर आनेके प्रसङ्गमें कुछ न पूछा । अंधेरा होने पर कहा-~चलो विनय, भीतर चलो। विनयने कहा-मैं अभी अपने घर जाऊँगा। परेश वाबूने उससे दूसरी बार टहरनेका अनुरोध न किया । विनय एक बार संकुचित दृष्टिसे दो मंजिलेकी अोर देखकर धीरे-धीरे चला गया । ऊपरसे ललिताने विनयको देख लिया था। जब परेश बाबू अकेले धरके भीतर बैठे थे, तब ललिताने समझा कि कुछ देर में विनय भी घर आवेगा । परन्तु विनय न अाया । तब टेवलके ऊपर की कुछ किताव को उलट-पुलटकर ललिता कोठेसे चली गई । परेश वाबूने फिर ललिता को पुकारा । उसके उदास मुँहकी अोर स्नेह-भरी दृष्टिसे देखकर कहा-बेटी मुझे एक ब्रह्म-सङ्गीत सुनायो। यह कहकर उन्होंने वी की रोशनी में कागज की आड़ कर दी।