पृष्ठ:गोरा.pdf/२४७

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[ ३४ ] दूसरे दिन बरदासुन्दरी और उसके दलके सभी लोग कलकत्ते श्रा पहुंचे ! हारान वावू ललिताके सम्बन्धमें अपने क्रोधको न रोक सके, इसलिये सीधे अपने घर न जा इन लोगोंके साथ एकाएक परेश वाबू के पास पाए । बरदासुन्दरी मारे क्रोध और ग्लानिके ललिताकी और न देख और न उसके साथ कोई बात करके सीधी अपने कमरमें चली गई। लावण्त्र और लीला भी ललिताके ऊपर बहुत रुष्ट थी । ललिता और विनय के चले बानेसे उनका अभिनय अङ्गहीन हो पड़ा था। बीच बीचमें उनदोनों का पार्ट खाली हो जानेसे वे सब बड़ी लज्जित हो गई। मुचरिता हारान बाबू की क्रोध भरी उत्कृट उत्तेजनामें, वरदासुन्दरीके आँसू भरे कटुवाक्यों में नथा लावण्य और लीलाके लज्जा भरे निन्माह में कुछ भी योग न देकर एकदम चुप हो रही थी। अपने निर्दिष्ट काम को बह मशीनकी तरह करती गई । नुधीर लज्जा और पश्चानापसे संकुचित होकर परेश बाबुले घरके फाटकने ही अपने घरको चला गया ? लावण्य उसको घर के भीतर पाने के लिए बार वार अनुरोध करके सफल न होने पर उसने बिगड़ बैटी और बोली-भानसे मैं तुमने कुछ न कदूंगी। हारान बाबू परेश वाचूके घर में प्रवेश करते ही बोल उठे एक बहुत बड़ा अन्याय हो गया है। पासवाले कमरे में ललिता थी। यह बात उसके कान में पड़ते ही वह आकर अपने पिताकी कुरसीके पीछे दोनों हाथ रखकर खड़ी हुई, और हारान बाबूके मुंहकी ओर टकटकी बांधकर देखने लगी। परेश वाबूने कहा-मैं ललिताके मुंह से सब बातें सुन चुका हूँ। जो बात हो गई, उसकी आलोचना करनेसे अब कोई फल नहीं। शान्त स्वभाव क्षमाशील परेश बाबूको हारानबाबू अत्यन्त दुर्बल हृदय समझते थे। इससे उन्होंने कुछ अनादरके साथ कहा- घटना तो हो