पृष्ठ:गोरा.pdf/२५

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[४] गोराके घर से निकल कर अपने घरको लौटते समय विनय वर्षा ऋतु की संध्या में जब वह कोचड़ की कवाकर धीरे धीरे रास्ते में जा रहा था तब पिछले दिन की गोरा और आनन्दमयी के बीच हुई बातें उसके हृदय में एक हलचल मचा दी थी ! समाज अगर इस जमाने के प्रकट और गुप्त आधान से आत्मरक्षा करके चलना चाहे तो, जुआछूत और खाने-पीने के बारे में विशेषरूप से सावधान होना होगा, इस मतको विनयने गोराके मुखसे सुनकर बहुत ही सहजमें ग्रहण कर लिया था। इसी मतको लेकर उसने विरुद्ध लोगों साथ तीखे भाव से अनेक बार वहस भी की है। किन्तु श्राम जी गोरा ने उसे आनन्दनयों के घर में खानेसे रोका उससे उसके हृदयको कड़ी चोट पहुँची । वह चोट नीतर ही भीतर उसे ब्यथित करने लगी। बिनयके वाप नहीं थे। माँ भी बचपन ही उसे छोड़कर स्वर्ग सिधार गई थी। चाचा थे, सो वह गाँवमें रहते थे। विनय बचपन से ही कलकत्ते में पड़ने लिखने के लिये अकेले घरमें रहा है। गोराके साथ मित्रता होनेसे जिस दिन विनयने आनन्दमयीको देखा उसी दिनसे उसने उनको अपनी सगी माँकी जगह समझ लिया ! अक्सर आनन्दमयीके घर जाकर छोटे बालकोंकी तरह ऊधम मचाया है। आनन्दमयी को यह अपवाद लगा कर कि माँ नुन तो गोरा को भोजन का अधिक अंश देकर उसके प्रति पक्षपात करती हो अनेक बार उसने बनावटी ईर्षा प्रकट की है। विनय को अच्छी तरह मालूम था कि वह अगर दो चार दिन नहीं जाता 1 1 २५