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गोरा

गोरा [ २५३ पहले एक ऐसा समय था जब ललिताके सम्बन्ध विनय को कुछ सङ्कोच न था । तब उसने आनन्दमयी के आगे ललिताकी तीक्ष्ण बुद्धि पर जो वेरोक आलोचना की थी, वह उसे याद ही थी आनन्दमयी खूब चतुराई से सब बाधाओं को बचा-कर ललिताकी बातको इस प्रकार ले चली कि विनयके द्वारा उसके जीवन की प्रायः सभी चाते प्रकट हो गयी । गौराके जेल जानेकी घटना से दुखी होकर ललिता चुपचाप अकेली भागकर स्टीमर पर विनयके साथ आई यह बात भी विनयने आज कह डाली। कहते-कहते उसका उत्साह बढ़ गया । वह जिस दुःखके बोझसे दवा जा रहा था, वह एकदम हलका पड़ गया । उसने ललिताके समान बालिकाके अद्भुत चरित्रको जाना और उसके चरित्रका इस प्रकार वर्णन किया, इसीको वह परम लाम मानने लगा। रात को जब भोजन के लिए बुलाहट हुई, और वात स्वतम हुई तब विनय मानों स्वप्नसे जाग उठा; उसे मालूम हुआ किनेरे मनमें जो कुछ बात थी वह सी प्रानन्दमयाले कही जा चुकी है ! अानन्दनवाने विनयले नुहने आज ननी वाले नुनी बाद वह नौस छिपाने की कोई बात विनयके ननने न थी! मामूली से मानली बात नी यह अानन्दमययी के पास श्राकर कह सुनाता था । किन्नु परेश बाबूके घर के लोगों के साथ बक्से परिचय हुअा है तबसे कोई एक बात उसके हृदय में कहीं अटक रही थी वह उसे बराबर कसकती थीं ! अाज ललिताके सन्बन्धकी जो बातें उसके मन में थी वे एक प्रकार से सनी प्रानन्दनवी पर प्रकट हो गई है। यह सोचकर विनयका मन उल्लतित हो गया । भोजन करके रातमें अकेली बैठकर आनन्दमयी इन बातांकों बड़ी देर तक सोचती रही। गोराके जीवन की समस्या उत्तरोत्तर जटिल होती जा रही है और परेश वाबूके अरमें ही उसकी कोई मीमांसा हो सकती है। यह साचकर उसने निश्चय किया कि जैने होगा, एक बार परेश वाकी लड़कियोंके साथ अवश्य भेंट करनी होगी।