पृष्ठ:गोरा.pdf/२५४

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। । शशिमुखीके साथ विनवका विवाह जैसे एक तरह से पक्का होगया है, इस दंगसे महिम और उसके बरके और लोग चल रहे थे। शशिमुखी तो: विनय के पास ही न फटकती थी। शशिमुखी की माँ लक्ष्मीमणि के साथ तो विनयका परिचय जैसे था ही नहीं, यह कहना कुछ झूठ न होगा। वह ठीक लज्जाशीला हो, यह बात न थी। बात यह थी कि यह कुछ अस्वाभाविक रूपसे परदा पसन्द करती थीं। उसने पक्के तौर पर वह ठीक कर लिया कि विनयके साथ ही उसकी कन्याका ब्याह होगा। इस प्रस्ताव की एक मारो सुविधा की वह वात उन्होंने अपने लामीक मनमें जमा दी कि विनय उन लोगों से दहेज में कोई भारी रकम न मांग सकेगा। आज रविवार था। विनय को घरमें अकला बैठा देखकर महिमने कहा-विनय नुमने जो कहा था कि तुम्हारे वंशमें अगहन के महीने में विवाह होनेका नियंध है, सो यह तो किसी काम की बात नहीं है। एक तो पोथो पत्रे निषेधके सिवा कोई बात ही नहीं है, उस पर अगर घरके शास्त्रको मानोंगे तो फिर वंश की रक्षा किस तरह होगी?" विनयके संकटको देखकर अानन्दमयोंने कहा-शशिनीको विनय उसके विल्कुल वचपनसे देखता आ रहा है; उससे व्याह करनेकी बात उसे पसन्द नहीं आती और इसी से वह अगहनके निषेध का बहाना कर रहा है। महिमने कहा- यह बात तो फिर शुल्में ही कह देनी चाहिए थी। आनन्द०-अपने मन को जाँचनेमें भी तो कुछ समय लगता है। और लड़कोंकी क्या कमी है महिम ! गोरा लौट कर आ जाय-बह तो अनेक अच्छे लड़कोंको जानता है-वह एक लड़का हूँढ़ कर ठीक करदे सकेगा। २५४ 3