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गोरा

गोरा [२५५ महिमने कहा-माँ, तुम अगर विनयके मनको ढंका न देती, तो वह इस काम में कुछ नाहीं-नही न करता । विनय व्यस्त होकर कहनेको था कि इतने में प्रानन्दमयीने बाधा देकर कहा-सा सच ही कह रही हूँ महिम, मैं इस काममें विनयको उत्साहित नहीं कर सकती । विनय अभी लड़का ही है। मुमकिन है कि वह बिना सोचे समझे एक काम कर भी डाले किन्तु अन्तमें उसका फल अच्छा न होगा। आनन्दमर्याने विनयका अलग अाइमं रखकर अपने ही ऊपर महिम के कापका धक्का ले लिया। विनय यह बात समझ गया, और अपनी इस दुर्बलता पर लज्जित हो उठा । वह अपनी असम्भतिको सष्ट करके प्रकट करने को उद्यत हुआ इतने ही में महिम और न ठहर करके मन-ही-मन यह कहते हुए चले गये कि सौतेली माँ की अपनी नहीं होती। आनन्दमयी इस बातको जानती थी कि नहिम ऐना खयाल मनमें जा सकता है और वह खुद भी सालो मा होने के कारण विचार क्षेत्रमें बरावर अपराधी को श्रेणी में ही स्थान पाये हुये है। किन्तु यह सोचकर कि लोग क्या खयाल करेंगे, काम करनेका उन्हें अभ्यास ही न था। जिस दिन उन्होंने गोरा को अपनी गोद में उटा लिया उसी दिनने उनकी प्रकृति लोगों के प्राचार और विचारने एक दम स्वतन्त्र हो गई है । उस दिन से वह इस तरह के मब पाचरण करता पाई है कि जिन लोग उनकी निन्दा ही करते हैं। उनके जीवन मर्मस्थानमें जो एक छिया हुआ सत्य उन्हें सर्वदा पीड़ा पहुँचाता है, यह लोक-निन्दा असलमें उस पीड़ासे कुछ छुटकारा देकर शान्ति ही पहुँचाती है । लोग जब उन्हें क्रित्तान कहते थे तो वह गोराको छातीस लगाकर कहती थीं-भगवान् जानते हैं क्रिस्तान कहनेसे मेरी कुछ भी निन्दा नहीं होती। इस तरह क्रमशः सभी मामलों में लोगांकी वातासे अपने व्यवहारको अलग कर देना उनके लिए एक स्वभाव सिद्ध वात हो गई थी ! इसी कारण महिम नन-ही-मन या । -