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२५६ ]
गोरा

२५६ ] गोरा प्रकट रूपसे सौतेली माँ कहकर अगर उन्हें लांछित करता तो भी वह अपने निश्चित मार्गसे विचलित न होती। आनन्दमयी ने कहा-~-विनू तुम बहुत दिन से परेश बाबू के घर नहीं गये? विनयने कहा-बहुत दिन अभी कहाँ से हो गये ? श्रानन्द०--- -स्टीमरसे पाने के दूसरे दिन से तो तुम एक दफे भी उधर नहीं गये। वह तो बहुत अधिक दिनकी बात है, किन्तु बिनय जानता था, कि बीचमें परेश बाबूके घर उसका जाना-याना इतना बढ़ गया था कि अानन्दमयी को भी उसके दर्शन दुर्लभ हो उठे थे । उसके देखते बेशक वह परेश बाबूके घर बहुत दिन से नहीं गया । विनय चुप होकर अपनी धोती के सिरसे एक डोरा तोड़ने में लग गया। इसी समय नौकरने आकर कहा कि माँ जी कहींसे औरत आई है। विनय चटपट उठ खड़ा हुआ । कौन आया कहाँसे आया; इसकी खबर लेनेके पहिले ही सुचरिता और ललिता ने वहाँ प्रवेश किया। विनयका घर छोड़कर बाहर जाना न हो सका; वह सन्नाटेमें श्राकर वहीं खड़ाका खड़ा रह गया। दोनोंने अानन्दमयीके पैर छूकर प्रणाम किया । ललिता ने विनयकी और विशेष ध्यान नहीं दिया; नुचरिताने उसे नमस्कार करके कहा- अच्छे है श्राप ? फिर आनन्दमयीकी और देखकर कहा-हम परेश बाबू के घर से आई हैं? अानन्दमयीने अादर करके उन्हें विटलाया और कहा-~-मुझे वह परिचय देना न होगा। तुम लोगोंको मैंने कभी देखा नहीं बेटी, मगर तुम्हें मैं अपने घरका अादमी ही जानती मानती हूँ। देखते-देखते बात-चीतका सिलसिला जम गया । विनय को चुपचाप