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२५८ ]
गोरा

२५८ ] गोरा उठने से काम नहीं चलेगा बेटा-सच बात कह रही हूँ इसमें लज्जा करने का तो कोई कारण मैं नहीं देखती। क्यों न वेटी ? अबकी ललिताके मुखकी ओर देखती ही उसकी आंखें नीची हो गई । सुचरिताने कहा--विनय बाबू जो हमें अपना अादमी ही मानते हैं, यह हम खूब जानती है किन्तु वह हम लोगोंके ही गुणसे नहीं-वह उनकी अपनी क्षमता है। आनन्दमयी ने कहा—सो तो मैं ठीक कह नहीं सकती बेटी । विनयको तो मैं तबसे देख रही हूं जब वह इतना सा था । अब तक उसके मित्रों में एक मेरा गोरा ही था; यहाँ तक कि मैंने देखा है, इन लोगों के अपने दलके जो आदमी हैं, उनके साथ भी विनय हिलमिल नहीं सकता। लेकिन तुम लोगोंके साथ उसके दो दिनके पालाप परिचयले ही ऐसा हो गया है कि हम लोग भी अब उसका पता नहीं . पाते । सोचा था, इसके लिए तुम लोगोके साथ झगड़ा करूँगी; किन्तु इस समय देख रही हूँ, मुझे भी विनयके दल में भरती होना पड़ेगा। यह कह कर आनन्दमयीने एक बार ललिताको और एक बार सुचरिताकी टुण्डी उँगली से छूकर उसे सुचरिताने विनयकी दुर्दशा देखकर सहृदय होकर कहा-विनय बाबू ! बाबू जी भी आये हैं; वह बाहर कृष्णदयाल बाबू से बातें कर रहे है। सुनकर विनय चटपट बाहर चल दिया। तब गोरा और विनयकी असाधारण मित्रताके प्रसंगको लेकर आनन्दमयी बातचीत करने लगी। दोनो श्रीता इस विषयको मन लगा कर सुन रहे हैं, यह उन्हें अच्छी तरह मालूम हो गया। आनन्दमयी अपने जीवन में इन्हीं दोनो लड़कों को अपने मातृ स्नेहका परिपूर्ण अयं देकर पूजा करती आ रही हैं । संसार में इनकी अपेक्षा बड़ा उनका और कोई नहीं । उनके मुखसे उनके इन दोनों गोंदके देवतों की कहानी स्नेह रससे ऐसी मधुर, ऐसी उज्वल हो उठी कि सुचरिता और ललिता दोनों अतृप्त हृदयसे उसे सुनने लगी। चूम लिया।