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गोरा

२६.] गोरा वरदासुन्दरी उससे जिस अपराधके प्रति लक्ष करके कहती थी कि हिन्दुओंके घरकी औरतें भी ऐसा काम नहीं करती, उस अपराधके लिए, ललिता बार-बार कुछ विशेष करके ही सिर नीचा कर लेती थी । अाज अानन्दमयीके मुख से कुछ बातें सुनकर उसके अन्तः करणने बार-बार विस्मयका अनुभव किया। उसके मन के भीतर अाज एक भारी हलचल मची हुई थी; इसीसे उसने विनयके मुखकी ओर नजर नहींकी, उसके साथ एक बात भी नहीं की। किन्तु अानन्दमयीके स्नेह करुणा और शान्तिसे मरिहत मुखकी ओर देख कर उसके हृदयमें जो विद्रोहका ताप या, वह जैसे ठंडा हो गया— चारो ओरके सब लोगोंके साथ उसका सम्बन्ध जो हो आया ! ललिताने आनन्दमयीले कहा-गोरा बाबूने इतनी शक्ति कहाँसे पायी है वह आज आपको देखकर मेरी समझमें आगया। आनन्दमयीने कहा-~टीक नहीं समझी। मेरा गोरा अगर साधारण लड़कोंकी तरह होता तो में कहाँसे बल पाती बेटी ! तब क्या मैं उसके दुखको इस तरह सह सकती ? ललिताका मन अाज क्यों इनता विकल हो उठा था, इसका थोडासा इतिहास कहनेकी अवश्यकता है। इधर कई दिनसे सबेरै बिस्तरसे उठते ही ललिता मनमें पहला खयाल यह आया है कि आज विनय वाबू नहीं आयेंगे। फिर भी दिन भर उसके मनने एक घड़ीके लिये भी विनयके आनेकी प्रतीक्षा करना नहीं छोड़ा। दन-दम भर पर उसने केवल यही सोचा है कि विनय शायद आया है; वह शायद अपर न आकर नीचेकी बैठकमें परेश वाबूके साथ वात चीत कर रहा है। इसी कारण दिन भर में कितनी बार वह अकारण ही 'इश्वरसे उधर घूमती फिरी है; इसका कुछ टिकाना नहीं ! अंतको दिन जब समाप्त हो जाता है रातको जब वह बिस्तर पर सोनेको जाती है, तव वह सोच कर भी कुछ ठीक नहीं कर पाती कि वह अपने इस अशान्त मनको लेकर क्या करेगी--अपने मनको किस तरह समझावे बहलावेगी। हृदय