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गोरा

गोरा [ २६५ धुंधले रँगके कुहरेंमें सुनहली अामा अस्पष्ट पड़ रही थी। किन्तु इस म्लान सन्ध्याके दुषले धूसर वर्णने भी आज विनयके मनको रंगीन कर डाला था। उसे जान पड़ने लगा, चारों दिशाओंने जैसे उसे खूब धेर लिया है-आकाश जैसे उसे स्पर्श कर रहा है। आनन्दमयीने कहा-दोनों लड़कियाँ साक्षात् लक्ष्मी है। विनयने इनुनी प्रशंसा पर रुकने न दिया। अनेक पहलू उठा- उठाकर इसी आलोचनाको आगे बढ़ाता रहा । परेश बाबुकी लड़कियों के सम्बन्धमें कितने ही दिनांकी कितनी ही लोग्र-मोटी घटनाओका प्रसङ्ग उठा—उनमें से अधिकांश बिलकुल ही मामूली थी; किन्तु उस अगहनकी मलिन सन्नाटकी सन्ध्यामें एकांत स्थानमें विनयका उत्साह और आनन्दमयीकी उत्सुकता इन दोनोंके सहयोग से उन सब खुद गृह-कोणकी अप्रसिद्ध घटनाओंका इतिहासखण्ड एक गहरी महिमामे परिपूर्ण हो उठा। आनन्दमयी एकाएक एक वार साँस छोड़ कर उठी-नुचरिताके साथ अगर गोराका ब्याह हो सके तो मुझे बड़ी खुशी हो। विनय उडल पड़ा। बोला--माँ, मैंने यह बात अनेक बार सोची है : ठीक गोरके योग्य संगिनी सुचरिता दीदी हैं । अानन्दः -किन्तु क्या ऐसा हो सकेगा ? विनय-क्यों न होगा ? मुझे जान पड़ता है, गोरानी मुचरिताको पसन्द करता है। अानन्दमयांसे यह छिपा नहीं था कि गोराका मन किती एक जमह अवश्य आकृष्ट हुआ है। विनयकी अनेक वातोंके बीचसे उन्होंने यह भी समझ लिया था कि वह लड़की सुचरिता ही है। थोड़ी देर चुप रहकर आनन्दमयी ने कहा -~-किन्तु सुचरिता क्या हिन्दूके घर व्याह करना चाहेगी? विनय--अच्छा, माँ, गोरा क्या ब्राह्म परिवारमें व्याह नहीं कर सकता ? तुम्हारी क्या इसमें सम्मति नहीं है ? आनन्द. मैं तो बड़ी खुशी से सम्मति दे दूंगी।