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गोरा

- २७०] गोरा मैंने जब रुपया देना बन्द कर दिया और जब मेरे जमाईको सन्देह हुआ कि उसकी स्त्री ही रुपया नहीं देने देती, तब उसके ऊधम का अन्त न रहा । उसने मेरी लड़की पर घोर अत्याचार करना प्रारम्भ किया । वह मेरी लड़कीको भाँति भाँतिसे दुाख देने लगा। सबके सामने उसको मारने-पीटने और गालियाँ देने लगा। यह सब सुन कर मेरे दुःखकी सीमा न रही । वह मेरी लड़कीको दुःख न दे इसलिए मैं अपनी लड़की. से छिपाकर फिर उसे रुपया देने लगी। जानती थी कि यह रुपया मैं पानीमें फेकती हूँ । किन्तु वह मनोरमाको हद दरजेकी तकलीफ दे रहा है, यह खबर पातेही मैं गला फाड़-फाड़कर रोती थी और जमाईको रूपया देकर उसे सन्तुष्ट रखने की चेष्टा करती। आखिर एक दिन-वह दिन मुझे याद है, मात्रके कुछ दिन बाकी थे, सबेरका समय था--में अपनी पड़ोसिनके साथ बातें कर रही थी ? यही कह रही थी कि मेरे घरके पिछवाड़े जो बाग है उसमें श्रामकी अच्छी मंजरी आई है। उसी दिन पिछले पहर मेरे दरवाजे पालकी उतारी गई। देखा-मनारमाने हँसते-हँसते आकर मुझे प्रणाम किया । मैंने कहा-कहो बेटी, क्या हाल है ? मनोरमाने प्रसन्न मुखसे कहा-हाल अच्छा न रहनेसे बेटी क्या माँ के घरमें हँसी-खुशीसे आ सकती है ? मेर समधी समझदार थे। उन्होंने मुझे कहला भेजा, वहूका पांव नारी है । सन्तान प्रसव होने तक वह अपनी मांके पास रहे तो अच्छा है। मैंने सोचा, यही बात सच है, किन्तु मेरा जमाई इस अवस्थामें भी मनोरमाको मार पीटकर अपने जा का बलन बुझाता था। इसलिए गर्भावस्था में अनिष्टके भय से ही समवीने अपनी पतोहूको मेरे पास भेज दिया, यह मैं न जानती थी । मनोरमाने अपनी सासकी शिक्षाके अनुसार मुझसे कोई बात न कही। जब मैं उसे अपने हाथसे तेल लगाकर मन कराना चाहती थी तब वह कोई न कोई बहाना करके मुझे तेल लगाने न । 2 ! 5 ।