पृष्ठ:गोरा.pdf/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७२ ]
गोरा

, छूकर मुझे २७२] गोरा. मैंने कहा-बेटी ? पालकी लौटा देनेसे मेरे क्रोधी जामाता आपेमें रहेगे । कुछ काम नहीं है तुम अाज ही जाओ। मनोरमाने कहा-~नहीं माँ, आज नहीं मेरे ससुर कलकत्ते गये हैं । आधे फागुन तक वे लौट आवें गे, तब.मैं जाऊँगी। मैंने न मानी, कहा-नहीं, तुम जानो। तब मनोरमा लाचार होकर जानेको तैयार हुई। मैं उसकी ससु- राल के नौकर और कहारांको खिलाने पिलाने लगी ! उसके जाने के पहले उसके पास कुछ देर बैठती सो भी न हुआ। उस दिन उसके साथ दो-एक बात करती अपने हाथसे उसको भूषण वसन पहिराती उसका शृङ्गार करती, बह जो खाने को पसन्द करती सो उसे खिलाकर विदा करती, ऐसा अव. काश मुझे न मिला । पालकी में सवार होने के पहले उसने पैर प्रणाम किया और कहा-माँ, 'मैं अब जाती हूँ। मैं क्या जानती थी कि वह सचसुच नेरे घरसे सदाके लिए जाती है। वह जाना नहीं चाहती थी, मैंने बरजोरी उसे विदा कर दिया। उस दुःख से अाज तक मेरी छाती जल रही है, वह किसी तरह ठण्डी नहीं होती। बह उसी रात को ससुराल पहुंची और उसी रात में उसका गर्भपात हुआ । गर्भपात होनेके साथ उसकी भी नृत्यु हो गई। जब मुझे यह खबर मिली, उसके पूर्व ही उसकी लाश जला दी गई । मैं उसका मुंह भी देखने न पाई। जो यात कहने की नहीं, करने की नहीं, सोचने की नहीं सोचकर भी जिसका अन्त नहीं हो सकता वह दुःख क्या साधारण दुःख है, वह तुम न जानोगी, जाननेका कोई प्रयोजन नी नहीं। मेरे तो एक-एक कर सनी चले गये, किन्तु तो भी विपति का अन्त न हुा । मेरे स्वामी और मेरे पुत्रकी मृत्यु होते ही. देवर लोग मेरी सम्पत्तिके ऊपर दॉत गड़ाने लगे । यद्यपि ये जानते थे कि मेरी मृत्युके