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गोरा

२७६ ] गोरा उसने हताश होकर कहा—जारो अाजसे तुम्हारे साथ मेरा सम्बन्ध टूट गया। में जाता हूं। मैंने देखा नीलकान्त भी मुझे छोड़कर जा रहा है। क्या मेरा भाग्य ऐसा खोटा है कि दुःखमें एक भी सहारा मेरे पास न रहा ! मैं अपने इस दुर्भाग्य पर वार बार पछताने लगी। मैंने अपनी भूल स्वीकार कर नीलकान्तसे कहा -श्राप मुझ पर क्रोध न करें ! मेरे पास कुछ रुपया एकत्रित है। उसमें से अभी आपको पांच सौ देती हूं ! श्रापकी पतोहू जब आपके घर आवे तब उसके लिए मेरे आशीर्वाद के रूप से इन स्ययों का उसे गहना गढ़ा दीजिएगा। नीलकान्तने कहा मुझे अव इसकी जरूरत नहीं। मेरे मालिक का जब सब कुछ चला गया तब ये पांच सौ रुपये लेकर मैं कौन सुख भोगूंगा। आप रहने दीजिये ---यह कहकर मेरे स्वामी का एक सच्चा शुभचिन्तक मी मुझे छोड़कर चला गया। मैं पूजा-घर में रहने लगी । मेरे देवरोंने मुझसे कहा—तुम किसी तीर्थ में जाकर रहो। मैंने कहा-ससुरका घर ही मेरे लिए तीर्थ है। मेरे ठाकुरजी जहां रहेंगे वहीं मैं भी रहूंगी। मैं जो अधिकार में दो एक घर लिए बैटी थी, यह भी उन लोगोंसे न देखा गया ! वे मेरे घरामं अपनी सलतनत जमाने के लिए न्यन हो उठे। मेरे किस घरका किस काम में लावेंगे, यह उन लोगोंने पहले ही थक कर लिया था । आखिर एक दिन उन्होंने कहा-जहाँ तुम्हारा जी चाहे अपने ठाकुरको ले जाओ हम लोग उसमें दस्तन्दाजी न करेंगे। जब मैं इसमें कुछ सङ्कोच दिखाने लगी तब उन्होंने कहा- यहाँ रहनेसे तुम्हें खाना कपड़ा कौन देगा ? मैने कहा तुम लोगोंने जो परवरिश मुकर्रर कर दी है, वहीं मेरे लिए काफी है।