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गोरा २८३ कुतूहल-वश हरिमोहिनींके कमरे में जाने लगी । सुचारता गल्ता रोक कर खड़ी हो गई और बोली-~-इस कमरमें मत जाना। क्यो?" "इसमें उनके ठाकुरजी हैं । "ठाकुरजी है ! मालून होता है, दुन लोग राज ठाकुर पूजती हो।" हरिमोहिनोने कहा-हाँ, रोज पूजा करता हूँ ! 'शाकुरजी पर तुम्हारी भक्ति है ? "मेरा बसा भाग्य कहाँ जाउनपरनरी निति हो ? भनि होती ती नं अपने जन्मको सफल समझतीं।" उस दिन ललिता भी यहाँ मौजूद थी। उसने मुंह लाद करके आनेवाली बीसे पूछा----तुम जिसकी उपासना करती हो. क्या उसकी भक्ति नहीं करती? "बाह ! करती क्या नहीं? ललिताने निराइजाकर कहा-मांक नो तुम क्या करेंगे? नहीं करनी हो, यह भी हुन नहं जानती! इस पर यह कुछ न बाली और चुस्त्रान वहाँ न चला गई। हरिमोहिनीने अनेक यत्न किये जिसमें तुचरिता ऋचार महामं अपने दलले अलग न हो किन्नु वह किसी तरह सफल न हो सकी। इसके पहले हारान भाव र वडाबन्दीके बीच कुछ ननमुटाव रहता था किन्तु वर्तमान घटनासे दोनों में खूब नेलजोल हो गया । वरदा- मुन्दरीने कहा --कोई कुछ कहे, ब्रह्मसमाजके आदर्शको शुद्ध रखने के लिए यदि कोई हृदय से इच्छुक है तो वह हारान बाबू ही हैं । हारान वाबूने भी ब्राह्मसमाजी परिवारको सब प्रकार निकलङ्क रखने का पूर्ण यश वरदासुन्दरी को ही दिया। उसकी इस प्रशंसा के भीतर परेश बाबूने प्रति एक विशेष प्राक्षेप था; हारान बाबूने एक दिन परेश बाबूके सामने ही सुचरिता से कहा- सुना है कि आजकल तुमने ठाकुरका प्रसाद खाना प्रारम्भ किया है ?