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गोरा

गोरा [ २ हारान बाबू वित्मित होकर सोचने लगे कि सुचारताने मी अाजकल बात करना सीख लिया है। हारान बाबू की धारणा थी कि उनके समाजके लोगोंके व्यक्तिगत चरित्रमें जो अच्छा मला परिवर्तन हुआ है, उन्होंने किसी न किस तरह उसका प्रधान कारा अपने ही को मान लिया है। उसका अप्रकट प्रभाव भी भीतर ही भीतर काम कर रहा है, इसमें भी उन्हें सन्देह न था। इतने दिन उनके सामने भुचरिताकी जब कमी किसीने विशेष रूपसे प्रशंसा की है तब उन्होंने ऐसा मात्र धारण किया है, मानों वह सारी प्रशंसा हमारी ही हुई है । यह उपदेश, दृष्टान्त और अपने संसर्गके द्वारा मुचरिता के चरित्रको इस प्रकार नुधार रहे हैं कि इन मुच- रिताके जीवन द्वारा ही जन-समाज में उनका अनुमद प्रभाव प्रमाणित होगा। उनकी आशा ऐसी ही थीं। उस मुचरिता को सोचनीय अवनत दशासे हारान वायूको अपनी योग्यताके सन्बन्धमें कुछ भी गर्व कम न हुआ। उन्होंने सब दंग परेश अवृके माथे मड़ दिया ! परेश बाबूकी सब लोग बरावर प्रशंसा करते आये है, किन्तु हारान बाबू की उसमें सहमत नहीं हुए। वह परेश वाबूको प्रशंसनीब नहीं समझते थे। हारान बाबूकी इन बातोंसे सुचरिता बहुत कष्ट पाने लगी, पर अपने लिए नहीं, चरेश बाबूकी समालोचना ब्राह्मसमाजम जहाँ- तहाँ हो रही है, यह अशान्ति किस उपायसे दूर की जाय ? इधर सुचरिता की मोसी भी बरावर समझ रही थी कि मैं विनीत भाव धारण कर जितनी ही सबसे बचकर चलनेकी चेष्टा करती हूँ उतनी ही इस घरके लोगोंके लिये अद्रव स्वरूप होती जा रही हूं। इस कारण सुचरिता की मौसी जो मारे लज्जा और सोचके मरी जा रही थी बह देख सुचरिता का हृदय पीड़ित होने लगा। इस सङ्कट से उद्धार पानेका कोई रास्ता सुचरिताको न मुझ पड़ा।