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गोरा

- २८६ ] गोरा इधर सुचरिताको शीघ्र ब्याह देनेके लिए वरदासुन्दरी परेश बाबूको बहुत दिक करने लगी। उसने कहा-नुकरिता की जिम्मेदारी अब हम अपने ऊपर लेना नहीं चाहती। उसने अपने मनसे चलना प्रारम्भ किया है। अब यदि उसे श्राप ब्याहने में विलम्ब करेंगे तब मैं अपनी लड़कियों को लेकर कहीं और जगह चली जाऊँगी । सुचरिताका विचित्र दृष्टान्त मेरी लड़कियोंके लिए बड़े अनिष्ट का कारण हो रहा है। कुछ दिनों इसकी देखा देखी मेरी लड़कियाँ नी बिगड़ जायेंगी। इसका कोई उपाय शीत्र कीजिए नहीं तो इसके लिए आप को पीछे पछताना पड़ेगा। ललिता पहले ऐसी न थी, अब जो उसके जी में आता है कर बैठती है। उस दिन वह ऐसा काम कर बैठी, विनयके साथ चुपचाप चली आई, जिस कारण मैं लज्जा से भरी जा रही हूँ । क्या आप ममझते हैं कि इस काम में सुचरिता का हाथ न था ! आप अपनी लड़कियोंसे बढ़कर सुचरिता घर यार करने है, इसके लिए मैं आपसे कभी कुछ नहीं कहती किन्तु अब बह बात न चलेगी, यह मैंने आपसे कभी कह रखा है। मुचरिता के लिए तो नहीं, किन्नु घरके और लीगाकी अशान्तिके कारण परेश बाबू चिन्तित हो पड़े थे । इस अशान्तिका कारण हरिमोहिनी का रहना ही था । बरदानुन्दरी इस बात को लेकर वहीं गड़बड़ मचावेगी और अपने उद्योग में बह जितनी ही असाल होगी उतनी ही गड़बड़को बढ़ाती जायगी, इस बातको परेश बाबू जानते थे। सुचरिताके विवाह का प्रस्ताव भी वरदानुन्दरीने यही सोचकर परेश बाबूसे किया था। यदि सुचरिता का ब्याह शीघ्र हो जाय तो सुचरिता के लिए भी अच्छा ही होगा, यह विचार कर परेश बाबूने वरदानुन्दरीसे कहा-अगर हारानबाबू सुचरिता को राजी कर सकें तो मैं इस सम्बन्ध में कोई उन न कलंगा । वरदासुन्दरी ने कहा-उसे अब कितनी दफे राजी करना होगा ? वह कई बार तो अपनी सम्मति प्रकट कर चुकी है। आपके मनमें क्या है, सो मैं नहीं जानती । आप इसके लिए इतना दाल मटोल क्यों कर