पृष्ठ:गोरा.pdf/२९५

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[४०] सुचरिता नीचे दालानमें पाकर हारान बाबूके सामने खड़ी हुई और वाली—आपको क्या कहना सुनना है, कहिये ! हारान० - बैट जाओ। मुचरिता बैटी नहीं, चुपचाप बड़ी ही रही। हारानने कहः- मुचरिता, नुम मेरे साथ अन्याय कर रही हो । नुचरिताने कहा-आपने भी मेरे साथ अन्याय किया है ! हारानने कहा- क्यों कैने? मैंने नुमको जो वचन दिवा, यह अब भी...! नुचरिताने चीत्र ही में रोक कर कहा -न्याय क्या केवल मुंहकी वातसे ही होता है? उनी बत्रन पर जोर देकर क्या आप अपने कामाले मेरे ऊपर अत्याचार करना चाहते है। एक सत्य क्या सहस्त्र मिथ्या की अपेक्षा बड़ा नहीं है ? मैंने अगर सो दफे भूल की हो, तो क्या आप जबरदली मेरी उस भूल को अनगण्य करेंगे ? अाज जब मुके अपनी वह भूल मालूम पड़ गई है,तब मैं अपनी पहिले की किसी बात को स्वीकार नहीं करूंगी--- स्वीकार करने से ही मेरा अन्याय होगा? हारान वाव की समझमें किसी तरह यह बात नहीं पाती थी किन्तु सुचरिता का ऐसा परिवर्तन किसी प्रकार सम्नव हो सकता है, उसकी पहिले की स्वभाविक नम्रता और चुप रहनेकी-कम बोलने की आदत अाज जो इस तरह नष्ट हो गई हैं, उसका कारण उन्हीं का आचरण है, अनुमान करनेकी शक्ति और विनयका भाव उनमें नहीं था। उन्होंने मनमें सुचरिताके नये साथियों पर दोषारोपण करके सुचरिता से पूछा- नुमने क्या भूल की थी? २६५