पृष्ठ:गोरा.pdf/२९८

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। नुचरिता दुविधामें पड़कर अनेक कष्टोंका अनुभव करने लगी । भीतर से बाहर तक कहीं उसको चैन नहीं । गोराके प्रति उसके मनका भाव इतने दिनसे अलक्षित रूपमें घनिष्ठ होता जा रहा था । गोराके जेल जाने के कारण कष्ट उसके मनमें हो रहा है, उसके दूर होनेका उसे कोई उपाय नहीं दिखाई देता । वह दिन-रात घोर चिन्तामें डूबी रहती है। किसीसे अपने मनका दुःख कह भी नहीं सकती। उसे इतना भी समय नहीं मिलता जो एकान्तमें बैठकर वह अपने मानसिक दुःख पर कुछ विचार कर सके। हारान बाबूने उसका मन फेरने के लिए अपने समग्र समाजको उसके पास भेजकर उसे बाधित करने का उपाय रचा है। वह समाचार पत्रमें भी इस सम्बन्धका उल्लेख करना चाहता है । सुचरिता की मौसी परेश वाबूके घरमें ठाकुरजीकी पूजा करती है, और नुचरिताको वहका रही है, इसका भी उल्लेख किया जायगा। यह सुनकर मौसी बड़ी बेचैन हो पड़ी हैं । मैं अब क्या करू, कहाँ जाऊँ, इसी सोचमें इसका कुछ निश्चय नहीं कर सकती । सुचरितानी इसी सोचसे मरी जा रही है। इस सङ्कटके समय उसके एकमात्र अवलम्ब थे परेश बाबू । वह उनसे काई परामर्श लेना नहीं चाहती थी। उसे अनेक बातें कहने को थीं, जिन्हें वह परेश बाबूके सामने कह नहीं सकती थी और कितनी ही बातें ऐसी थीं जो सोचवश वह उनके निकट प्रकट नहीं कर सकती थी। यद्यपि वह परेश वाबूते कुछ नहीं कह सकती थी तथापि उसे पूर्ण विश्वास था कि ये मेरे हृदयका भाव जानते हैं । वह उन्हींको अपना माँ बाप समझ बैठी है। आजकल बाड़े के समय साँझको परेश वाबू वागमें उपासना करने न जाते थे । घरसे पच्छिम ओरकी एक छोटी सी कोठरीके खुले २६८ ,