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३०]
गोरा

३० ] गोरा आगे आत्म समर्पण करेंगे ? भारतवर्ष की सर्वाङ्गीन पूर्ण मूर्ति सब के आगे खड़ी कर दो, तो लोग उसके लिए पागल हो उठेगे। तब क्या दरवाजे दरवाजे देशोद्धार के लिए चंदा उगाहते फिरना पड़ेगा ? तब देश के लिए प्राण देने को लोगों में रेल पेल मच जायगी ? विनय -या तो मुझे संसार के और दस आदमियों की तरह बहते हुए चले जाने दो, और वा मुझे भारत की वह मूर्ति दिखानो। गोरा-उसके लिए पहले साधना करो। अगर मन में विश्वास है तो नुम उसे कठोर साधना में ही सुख पाओगे। हमारे जो शौकीन पेट्रियट (देश-भक्त) हैं, उनमें सच्चा विश्वास बिल्कुल नहीं है, इसी से वे अपने और पराए के निकट जोरके साथ कुछ भी दावा नहीं कर सकते । स्वयं कुबेर अगर उन्हें खुश करने या वरदान देने आवें, तो जान पड़ता है, शायद वे लाट साहब के चपरासी की गिलटकी चमचमाती हुई चपरास से अधिक कुछ माँगने का साहस ही नहीं कर सकेंगे ! उनमें आत्म विश्वास नहीं है, इसी से भरोसा भी नहीं है। विनय देखो गोरा सबकी प्रकृति एक सी नहीं है। तुमने अपना विश्वास अपने हृदय के भीतर ही पाया है और तुम अपने आश्रय को अपने ही जोर से खड़ा कर रख सकते हो, इसी से दूसरे की हालत को ठीक समझ. नहीं सकते। मैं कहता हूँ कि तुम मुझको चाहे जिस किसी एक काम में लगा दो-दिन रात मुझसे काम कराओ, नहीं तो जब तक मैं तुम्हारे पास रहता हूँ तब तक जान पड़ता है, जैसे कोई चीज मैंने पाई उसके बाद तुमसे अलग दूर जाने पर ऐसी कोई चीज मुझे अपने हाथ के पास. नहीं मिलती, जिसे पकड़ कर मैं रह सकू। गोरा–काम की बात कहते हो ? इस समय हम लोगों का एक मात्र कार्य यही है कि जो कुछ स्वदेश का है, उसी के प्रति संकोच और संशय से रहित सम्पूर्ण श्रद्धा प्रकट करके देश के अविश्वासी लोगों के मन में हम उसी श्रद्धा का संचार कर दें। देश के सम्बन्ध में लज्जा करके हमने अपने मन को दासता के विष से दुर्बल कर डाला है; हममें से हर एक जब अपने