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गोरा

] गोरा इस समय एकाएक वरदातुन्दरीकी नजर विनय पर पड़ी। वह पासके जीनेसे ऊपर हरिमोहिनीके पास जा रहा था । जब मनमें कुछ मालिन्य रहता है तब छोटी सी घटना भी बहुत बड़ी हो उठती है। विनयका यह ऊपरके कमरेमें जाना वरदासुन्दरीको ऐसा असह्य हो गया कि वह घरकी सजावट छोड़कर तुरन्त हरिमोहिनीके पास जा पहुंची। देखा, विनय चाई पर बैठकर श्रात्मीयकी भांति विस्वस्त भावसे हरिमोहिनीके साथ बातचीत कर रहा है। वरदासुन्दरीने कहा--तुम हमारे यहाँ जब तक जी चाहे रहो, मैं तुमको श्रादर से रक्तूंगी। किन्तु तुम्हारे ठाकुरजी को मैं अपने यहाँ नहीं रहने दे सकती। हरिमोहिनी देहातकी रहनेवाली थी। ब्राह्मके सम्बन्ध में उसकी धारणा थी कि वह किरित्तानी धर्मकी ही एक शाखा है। कई दिनोंसे वह इसी वातको सोच रही थी और इस चिन्तासे व्याकुल हो रही थी कि अब क्या करना चाहिए। ऐसे ही अवसर पर श्राज वरदातुन्दरीके मुखसे यह आत मुनकर वह समझ गई कि अब सोच-विचार करने का समय नहीं है, अब कोई बात शीघ्र ही स्थिर करनी होगी। पहले उसने सोचा, कलकत्तेमें मकान किराये पर लेकर रहूँगी तो कभी-कभी सुचरिता और सतीशको भी देख सकूँगो, किन्तु मेरे पास जो थोड़ी सी पँजी बच रही है उससे कलकत्तेका खर्च नहीं चलेगा। वरदासुन्दरी वण्डरकी तरह अाकर चली गई तब विनय सिर नीचा करके चुप हो बैठा रहा। कुछ देर चुप रहकर हरिमोहिनीने कहा-मैं तीर्थको जाऊँगी, तुममेंसे कोई मुझे पहुंचा आवेगा? विनयने कहा-क्यों नहीं में पहुँचा आऊँगा । किन्तु इसकी तैयारी करने में दो चार दिनका बिलम्ब होगा । तब तक तुम मेरी माँ के पास चलकर रहो।