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गोरा

गोरा ३०२ ] विनयने समझा, अभी उपासना गृहमें न जाऊँगा तो इस घरमें जिस उपद्रवका प्रारम्भ हुआ है वह और बढ़ जायगा । इसलिये वह उपा- सना स्थलमें गया तो, परन्तु उसका जाना पूर्ण रूपसे फलित न हुआ। उपासनाके अनन्तर भोजनका प्रबन्ध था 1 विनयने कहा-अनी। मुझको भूख नहीं है। वरदासुन्दरी ने कहा - भूलको दोष मत दीजिये । श्राप ऊपरसे ही भूखको निवारण कर रहे हैं। विनयने हँसकर कहा-आपका कहना ठीक है, लोनी की ऐसी ही दुर्दशा होती है। वह वर्तमानकी अल्प प्रातिले भविष्य के बृहत लाभको खो बैठता है—यह कहकर विनय जानेको उद्यत हुआ । वरदासुन्दरी ने कहा-~-मालूम होता है आप फिर ऊपर जा रहे है ? सक्षेपमें 'हाँ कहकर विनय वहांसे बाहर आ गया । दाँजेके पास सुचरिता खड़ी थी। विनयने उससे मीठे स्वरमें कहा----बहन, एक बार मौसी के पास तुम्हारा जाना अवश्यक है। शायद वह तुममे कोई कामकी बात पूछेगी। ललिता अागत-जनोंके अातिथ्य में नियुक्त थी; एक बार हारानबाबू उसे अपने पास आते देख बोल उठे---विनय बाबू तो यहाँ नहीं है, ऊपर - गये हैं। उनकी यह व्यङ्ग-भरी बात सुनकर ललिता खड़ी हो उनके मुंहकी और दृष्टि करके निःसङ्कोच होकर बोली-मालूम है । वे मुझसे भेंट किये बना न जायेंगे। मैं यहाँ का काम पूरा करके अभी ऊपर जाऊँगी। ललिताको किसी तरह चुप न कर सकने के कारण हारानवावूके हृदय की ज्वाला और भी बढ़ गई । विनय सुचरितासे कुछ कह गया और सुच- रिताने कुछ ही देर पीछे उसका अनुसरण किया, यह हारान बाबूने अपनी आँखों देखा । आज वह सुचरिताले वातचीत करनेका ढंग निकाल बारबार विफल प्रयत्न हुए हैं। दो एक बार उनके द्वारा स्पष्ट रूपसे बुलाई जाने पर सुचरिताने उनकी बात अननुनी कर दी है, जिससे समास्थित