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गोरा [ ३०३ लोगोंके सामने हारान बाबूने अपनेको विशेष अपमानित समझा। इससे उनका मन प्रसन्न न था। सुचरिताने ऊपर जाकर देखा कि हरिमोहिनी अपनी चीजोंको समेट गठरी वांधे इस मावसे बैठी है जैसे अभी कहीं जावगी । सुचरितने पूछा- मौसी यह क्या ? हरिमोहिनीने उसका कोई उत्तर न दे, रो कर कहा--सतीश कहाँ है, बेी! एक बार उसे बुला दो। सुचरिताने विनयके मुहकी ओर देखा । विनयके कहा-इस घरमें मौसीका रहना सबको भारी मालूम होता है, इससे मैं इनकी माँ के पास लिये जा रहा हूँ। हरिमोहिनीने कहा-वहाँ से मैंने तीर्थ यात्राका विचार किया है । मेरे सदृश अनाथोंका इस तरह किसीके घर में रहना टीक नहीं। मुझे कोई अधिक दिन तक अपने घरमें रहने देना क्यों पसन्द करेगा? सुचरिता श्राप ही इस बातको कई दिनासे सोच रही थी ! इस वरमें रहना मौसी के लिए श्रापमान है यह नुचरिता जान चुकी थी, इसलिए वह कोई उत्तर न दे सकी । चुप होकर उसके पास जा बैटी। सायङ्कालका अन्धकार घरमें छा गया है परन्तु अभी तक चिराग-वत्ती नहीं हुई है । हेमन्तके धुधले आकाशमें कहीं-कहीं तारे उगे हुए दिखाई दे रहे थे । किसके नेत्रोंसे आंसू गिर रहे हैं, यह इस अंधेरेमें दिखाई न दिया । जीने परसे ही सतीशका ऊँचे स्वरसे मौसीको पुकारने का शाब्द नुन पड़ा । "क्या है बेटा ? अो" कहकर हरिमोहिनी झट उठ खड़ी हुई । सुचरिताने कहा ...मौसी, आज रातको कहीं जाना ठीक न होगा, कल सवेरे की यात्रा टीक होगी ! बाबूजीको जानेकी सूचना दिये बिना तुम कैसे जा सकोगी? यह बड़ा अन्याय होगा। विनयने वरदासुन्दरीके द्वारा किये गये हरिमोहिनीके अपमानसे उत्तेजित होकर इस वातको न सोचा था । उसने यही निश्चय किया था कि अब एक रात भी मौसीका इस बरमें रहना मुनासिब नहीं है। और 3