पृष्ठ:गोरा.pdf/३०७

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[ ४२ ] दूसरे दिन सवेरे हरिमोहिनीने परेश बाबू के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया उन्होंने हड़बड़ाकर कहा-यह क्या ? हरिमाहिनी ने आँखामें आँसू भर कर कहा-आपका ऋण मैं किसी जन्ममें भी न चुका सकेंगी। मेरे सदृश इतनी बड़ी अनाथाके लिये आपने आय कर दिया है। यह आपके सिवा और कोई नहीं कर सकता था। प्रार्थना करने पर भी मेरा कोई उपकार करनेवाला यहाँ नहीं। आपके ऊपर भगवान्की बड़ी कृपा है, इसीसे आप मेरे सदृश अभागिन के ऊपर भी कृपा कर सके है। परेश वाचू बड़े संकुचित हो उठे। उन्होंने कहा- मैंने तो आपका कुछ उपकार नहीं किया है । कुछ किया है तो राधा रानी (मुचरिता) ने ! हरिमाहिनीने रोकर कहा- मैं जानती हूं. किन्नु राधा रानी भी तो आपकी ही है। उसका किया मैं आपका ही किया समनती हूँ। उसकी माँ जब चल बसी, उसके पिता भी न रहे, तब मैंने कहा कि लड़की बड़ी अभागिन है। किन्तु इसके बिगड़े नसीबको ईश्वर ऐसा अच्छा कर देंगे, वह मैं न जानती थी। ठौर-टौर पर घूमती-फिरती अाखिर जब मैं कलकत्ते आई और आपके दर्शन मिले तब मैंने समझा कि भगवान्ने मुझ पर भी दवा की है। "मौसी, माँ आपको लिवाने आई हैं।" विनयने घर में पैर रखने के साथ यह बात हरिमोहिनीसे कहा-सुचरिताने उत्करिठत होकर- वे कहाँ है ? विनयने कहा-नीचे अापकी माँ के पास बैठी हैं। सुचरिता झट नीचे चली गई। ३०७