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गोरा

गोरा [३०६ कल्पनामें भी नहीं ला सकना था, मानों उसे वह सहसा पा गया है । नुम लोगों के पास उसके परिचय की घनिष्ठता होनेमे मुझे जितना हर्षे हुया है वह मैं तुमने क्या कहूँ • तुम्हारे इस घरमें विनयका जो इस तरह मन रम गया इसमे उसका बड़ा उपकार हुअा है, इस बातको वह बम्बूवी समझता है और हृदयके स्वीकार भी करता है। ललिताने कुछ उत्तर देनेकी चेष्टाकी पर कुल उत्तर न दे सकी। उसका मंह लज्जामे लाल हो गया । सुचरिताने ललिताका सङ्कट देखकर कहा -विनयबाव सबके हृदयका सदभाव रखते हैं उसी लिए सब मनुष्योंका सद्भाव इनके पास आकर एकत्र होता है ! यह इनमें विशेष विनयने कहा--तुम विनयको जितना बड़ा समझती हो उसकी उतनी बड़ी इज्जत संसारमें नहीं है। यह बात मैं नुमको समझाना चाहता हूँ, परन्तु मेरे मन में इतना अधिक अभिमान है जिसमे मैं समझा नहीं सकता, इसके आगे नैं अन कुछ नहीं बोल सकता : मेरी बात यही तक नहीं: इसी समय बरदानन्दसने अपर पाकर हरिमोहिनीकी और दृश्यपात तक न करके अानन्दमयाने पटा--आप हमारे घरकी बनी कोई बन्नु खा सकेंगी? आनन्दनयांने कहा-खाने-पीने में क्या परा है, हम अापके घरमें खानेसे क्या अजात होगी ? किन्तु आज नहीं, गोरा पा ले तव खाऊँगी। श्रानन्दमयी गोराके परोक्षमें उसके विरुद्ध कोई काम कर न सकी। वरदासुन्दरोने विनयकी ओर देखकर कहा--विनय बाबू तो यहाँ है मैं समझती थी, वे अभी तक नहीं आये हैं । विनयने तुरन्त कहा-मैं जो अाया हूँ सो श्राप समझती हैं कि बिना आपसे भेंट किये ही चला जाऊँगा?