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गोरा

गोरा w वरदासुन्दरीने कहा-कल तो आप निमन्त्रित होने पर भी बिना भोजन किये चले गये। आज मालूम होता है, विना निमन्त्रित ही भोजन करेंगे। विनय---इसका तो मैं अत्यन्त लोभी हूँ। मासिकके अलावा ऊपरी लाभकी ओर खिंचाव अधिक होता है। हरिमोहिनी मन ही मन विस्मित हुई। विनय इस घरमै खातापीता है। आनन्दमयी भी कुछ अाचार विचार नहीं करती है इससे उसका मन कुछ उदास हुआ। वरदासुन्दरीके चले जाने पर हरिमोहिनीने सङ्कोचके साथ पूछा- बहन, तुम्हारे स्वामी क्या- आनन्दमयी--मेरे स्वामी कट्टर हिन्दू है । हरिमोहिनीको अपार आश्चर्य हुआ। अानन्दमवीने उनके मनका भाव समझकर कहा--बहन, जब मैं समाज को श्रेष्ठ मानती थी. तब समाजकों मानकर ही चलती थी। किन्तु भगवान्ने मेरे घरमें एक ऐसी घटना कर दी जिससे मुझे समाजको छोड़ना पड़ा। उन्होंने जब स्वयं श्राकर मुझे जातिसे खारिज कर दिया तब मैं अब किससे डर! हरिमोहिनीने इस कैफियतका अर्थ न समझकर पूछा- तुम्हारे स्वामी? अानन्दमयी- इसके लिए वे मुझसे नाराज रहते हैं। हरिमोहिनी- लड़के? अानन्दमयी-लड़के भी खुश नहीं हैं। किन्तु उन्हें खुश करने से ही क्या होगा ? बहन, मैं अपनी बात कहूँ ? जो सर्वज्ञ हैं, वही सम- मगे। यह कहकर आनन्दमयीने हाथ जोड़कर प्रणान किया । हरिमोहिनीने समझा, शायद कोई पादरीकी स्त्री यानन्दमरी करे किरितानिन बना गई है। उसके मनमें बड़ी लज्जा उत्पन्न हुई।