पृष्ठ:गोरा.pdf/३११

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[ ४३ ] नुचरिताके साथ ही लावण्यलता, ललिता और लीलावतो धूनने लगा । वे बड़े उत्साह के साथ सुचरिताका नया घर सजाने को गई किन्तु उस उत्साह के भीतर गुन वेदनाके आँसू थे ! इतने दिन तक सुचरिता किसी न किसी ढङ्गसे परेश बाबूके छोटे-बड़े जितने ही काम कर दिया करती थी। कभी कल दानीमें फूल सजाकर रन्बनी: टेबलके ऊपर पुस्तके सँवारकर रख देती और उनका विलौना अपने हाथमे धूपमें सूखने को रख देती थी ! नित्य स्नान के समय उनको समयका सरण करा दिया करती थी। इन कामको वह को अपने मन में अभिमान न करती थी। भुचरिता अाजकल जत्र परेश बाबूक कमरेका कोई साधारण काम करनेको श्रानी थी तब वह कान परेश बाबू को दृष्टि में बहन बड़ा दिखाई देता था। और इससे उनके हृदय में विशेष मन्नोर उत्पन्न होता था। वह काम अब दूसरे दिन दूसरे के हाथ में हंगा, सुचरिताकी आँखोम ऑन र अाहे जिस दिन दो-नहरक जन करके नरेताले नये वर में जाने की बात थी उस दिन सवेरे पश बाबू ने अपने सूने कमरे में उसामना करने के लिए जाकर देखा कि उनके पासनके आगेकी भनिको फूलोस सजाकर मुचरिता वहीं, एक कोने में, उनके पानेकी प्रतीक्षा कर रही है । आसना समाप्त हो जाने पर जब नुवारताकः आँखास ग्रान गिरने लगे तब परेश बाबूने कहा-बेटी, रोती क्यों हो । पोछेकी और धूमकर तुम देखो, आगे का मार्ग तय करनेकी चेन करो, सङ्कोच करने की अावश्यकता नहीं । जैसा समय आ पड़े, सुख या दुःख जो तुम्हारे सामने श्रा जाय, उन सबोंको चुप-चाप सह लिया करो; और अपनी शक्तिके अनुसार जहाँ तक हो सके अच्छा काम करो । मनमें खेदको कभी न पाने दो। प्रसन्न रहना ही जीवनका मुख्य उद्देश है। ईश्वरको सम्पूर्ण रूपसे ,