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३१२ ]
गोरा

! ३१२ ] गोरा अात्म समर्पण करके उन्हींको अपना एक मात्र सहायक समझो। इससे भूल होने पर भी लाभ के मार्गसे विचलित न हो सकोगी। और अपनेको पूर्ण रूप से ईश्वरको समर्पित न करके अन्यत्र मन लगाओगी तो तुम्हारे सब काम कठिन हो जायेंगे । ईश्वर ऐसा ही करें जिसमें तुमको हमारे साधारण प्राश्रयकी अावश्यकता न हो। उपासनाके बाद दोनोंने बाहर आकर देखा कि बैठनेके कमरेमें हारान बाबू प्रतीक्षा किये बैठे हैं । सुचरिताने आजसे किसीके विरुद्ध मनमें किसी तरहका विद्रोह भाव न रखनेका प्रण करके हारान बाबूको नम्रता- पूर्वक नमस्कार किया । हारान बाबूने अपनेको अत्यन्त दृढ़ करके गम्भीर स्वरमें कहा--सुचरिता, इतने दिन तक तुमने जिस सत्यका अाश्रय किया था उससे आज पीछे हट रही हो। यह हम लोगों के लिए बड़े शोकका अवसर है। सुचरिताने कुछ उत्तर न दिया, किन्तु जो रागिनी उसके मनके भीतर शान्ति और दयाके साथ मिश्रित होकर बज रही थी उसमें कुछ वेसुरी आवाज आ पड़ी। परेश बाबूने कहा-अन्तर्यामी भगवान् जानते हैं कि कौन आगे बढ़ रहा है और कौन पीछे हट रहा है। बाहरी बातोंका विचार करके हम लोग वृथा उद्विग्न होते हैं। हारान बाबूने कहा---तो क्या आप कहना चाहते हैं कि आपके मन कोई आशङ्का नहीं है ? और आपसे पश्चात्ताप का भी कोई कारण नहीं है? परेश बाबू ने कहा-हारान बाबू, काल्पनिक अाशंकाको मैं मनमें जगह नहीं देता और अनुतापका कारण होना तभी मानूगा जब मनमें अनुताप उत्पन्न होगा। हारान०—यह जो आपकी कन्या ललिता अकेली विनय बाबू के साथ स्टीमर पर चली आई, क्या यह भी काल्पनिक हैं ? सुचरिताका मुह कोधमे लाल हो गया । परेश बाबू ने कहा-हारान