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गोरा [ ३१५ 1 i ही उनको छोड़ना चाहती थी, उतना ही बल करके वह इसको पकड़ रखना चाहते थे। उनको पूर्ण विश्वास था कि हम असाधारण नैतिक बलसे अवश्य ही जीतेंगे । अत्र भी उन्होंने हठ छोड़ दिया हो, यह भी नहीं । सुचरिताके प्रति उनका भाव वही है ! अब उनके मन में इस बातका सोच हुआ कि मौसीके साथ सुचरिता दूसरे मकानमें जायगी वहाँ उस पर मेरा जोर नहीं चलेगा इसी सोचसे वे बेचारे तुध थे। इसीलिए आज अपने ब्राह्मास्त्रको खूब तेज कर लाये थे। श्राज सबै ही वे मिजाजको खुब कड़ा करके सब वाताका फैसला कर लेने को तैयार थे। अाज सङ्कोचको मनसे हटाकर ही आये थे । किन्तु उनका विरुद्ध दल भी उसी प्रकार सङ्कोच दूर कर सकता है, ललितर और सुचरिता भी एकाएक उसने तीर निकालकर खड़ी होंगी, इसकी की उन्होंने कल्पना भी न की थी। को जानते थे कि जब हम अपने नैतिक अग्निबाणको बड़े वेग से चलावेंगे तब हमारे विपीका सिर नीचा हो जायगा ! किन्तु हेमा न हुअा अवसर भी हाथ से जाना रहा : किन्नु हारन बाबू हार माननेवाले नये : उन्हने नन में कहा - सच हद इर्ग हुँ : पर. ही जय होगी नहीं, इसके लिए लड़ाई करन: दु : हागन बाबू कनर कनकर रणक्षेत्रमें प्रविष्ट हुये ! सुचरिताने हारमोहिनीसे कहा -मौसी, मैं याज इन सबके साथ निलकर भोजन कलंगी, नुम ननमें बुरा मत मानी ! हरिमोहिनी चुर हो रही ! उसने ननमें विश्वास कर लिया था कि सुचरिता पूर्ण रूपसे मेरी हो गई, मैं उससे जो कहूंगो वही करेगी। विशेष कर जब सुचरिता अपनी सम्पत्ति के वज स्वाधीन होकर अपना घर सम्भालने चली है तत्र हरिमोहिनीको अब किसी वातका खौफ न रहेगा । वह सुचरिताको सोलह आने अपने पथ पर चला सकेगी। यही कारण है कि आज जब सुचरिताने प्राचार -विचार त्याग कर फिर सबके साथ इकट्टी होकर भोजन करनेका प्रस्ताव किया तब यह वात हरिमोहिनी को अच्छी न लगी और वह चुप हो गई। ..