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गोरा

३१६ ] गोरा -- सुचरिताने उसके मनका भाव समझकर कहा-मैं तुमसे सच कहती हूं कि इससे ठाकुरी प्रसन्न होंगे ! मेरे उन्हीं अन्तयामा ठाकुर ने मुझे अाज सबके साथ बैठकर भोजन करने का आदेश दिया है। उनकी बात न मान गी तो वे नाराज होंगे। मैं उनकी नाराजगीको तुम्हारे क्रोध की सापेक्षा अधिक डरती हूँ। जबसे हरिमोहिनी बरदासुन्दरी के द्वारा अपमानित होने लगी तब से गुचरिता ने उसके अपमान का अंश अपने ऊपर लेने के लिये उसका श्राचार ग्रहण किया था और आज जब उस अपमान से छुटकारा पाने का दिन उपस्थित हुना तब भुचरिता उसका आचार न मानकर क्यों चल सी है, हरिमोहिनी इस बात को भली भांति नहीं समझ सकी। वह सुचरिता को समझा कर कोई बात न कहती थीं। समझाना उसके लिये कठिन समस्या थी! कुछ देर चुप रहकर उसने कहा-बेटी ! मैं तुमसे एक बात कहती हूँ। तुम्हारे जीमें जो आबे करो, किन्तु इस दुसाध नौकरके हाथका पानी मत पियो। सुचरिताने कहा-यह रामदीन वेहरा ही तो अपनी गाय का दूध दुहकर तुमको दे जाता है। हरिमोहिनी ने नेत्र विस्फरित करके कहा--तुमने तो गजब किया । दूध और पानी एक हुआ। सुचरिताने हँसकर कहा-अच्छा मौसी, रामदीन का छूया जल शाज मैं न पिऊँगी । किन्तु सतीश से तुम ऐसा करने को कहोगी तो वह टीम इसका उलग काम करेगा। हरि मोहिनी---उत्तकी वात न्यारी है। हरिमोहिनी जानी थी कि पुरुषों के प्राचार-विचार में संयम नियम 5. अटि सहनी ही पड़ती है। -:०:--