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गोरा

३२०] गोरा करना होगा। विद्यार्जिनियाँ चाहिए और खर्चके लिए कुछ रुपये भी चाहिए । ये सब काम क्या चाही हो जायेंगे। ललिता-बहन, यह कहने से कुछ न होगा। ऐसा कौन काम है जो यत्न करनेसे नहीं हो सकता। स्त्री होकर जन्म लिया है तो क्या इनसे मुंह छिपाकर रहेंगी, क्या हम सब संसारका कोई काम न करेंगी ? ललिताके मनमें जो दुःखका तार था, वह सुचरिताके हृदयमें वज उठा। वह कुछ जवाब न देकर मन हो मन सोचने लगी। ललिताने कहा--नुहल्लेमे तो कितनी ही वे पढ़ी-लिखी लड़कियाँ है, हम लोग अगर उनको या ही पढ़ाना चाहें तो वे वहद, खुशी होगी। उनमें जो पढ़ना चाहंगी उन्हें तुम्हारे इस घरमें लाकर हम-तुम दोनों मिलकर पढ़ा दिया करेंगी। इसमें खर्च की क्या जरूरत है ? इस घरमें मुहल्ले की लड़कियोंको एकत्र करके पढ़ानेकी बात सुनकर हरिमोहिनी उद्विभ हो उठी। वह लागों की भीड़-भाड़से बचकर एकान्तमें पूजा पाठ करके शुद्ध प्राचार विचारसे रहना चाहती थी। इसलिए वह टाकुरजीकी सेवा में व्याघात पहुंचनेकी सम्भावनासे आपत्ति करने लगी। सुचरिताने कहा-मौसी, तुम डरो मत; यदि लड़कियाँ जुटेंगी तो हम उन्हें नीचेके कमरमें ही पढ़ा लिखा लेंगी। तुम्हारे इस ऊपरवाले कमरे में हम उत्पात करने न आवेगी । सुनो ललिता बहन, यदि पढ़नेवाली लड़- कियाँ मिले तो मैं यह काम करने को राजी हूँ। ललिता —अच्छा, एक बार यत्न करके देखुंगी। हरिमोहिनी बार-बार कहने लगी-सभी बातोंमें तुम लोग किर- स्तानोंकी नकल करोगी तो कैसे चलेगा ? गृहस्थके घरकी बड़कियोंको स्कूल में पढ़ते मैंने नहीं देखा। परेश बाबूके छतके ऊपर समीपवती घरोको छत परकी त्रियों में परस्पर वार्तालाप होता था । इस परस्परकी बात-चीतमें बड़े विस्मयका विषय यह था कि पासवाले घरकी स्त्रियाँ इस घरब लड़कियोंकी जवानी