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गोरा

गोरा [३२१ में भी, अब तक शादी न होने पर श्राश्चर्य करती और प्रायः रोज ही प्रश्न पर प्रश्न करती थी। इस छतके मित्रत्व विस्तारमें सबकी अपेक्षा लावण्यलता ही विशेष उत्साहित थी । दूसरेके घरका व्यावहारिक इतिहास जाननेकी उसे बड़ी चाह थी। उसके लिए यह एक विशेष कुतूहलका विषय या पड़ोसियोंक घरका नित्य नया समाचार वायुकी सहायतासे उसके कानोंमें या जाता था । मानो सुननेका उसे एक रोग सा हो गया था। ललिताने अपने सङ्कल्पित गर्ल्स स्कूल के लिये लड़कियों के संग्रह करने का भार लावण्यको सौंपा । लावण्यने जव हर एक छतवाली स्त्री से इस प्रस्तावकी घोषणा कर दी तब बहुतेरी लड़कियाँ उत्साहित हो उटी । ललिता प्रसन्न होकर सुचरिताके धरके निचले खण्डको चूनेसे पोतवाकर खूब झाड़ बुहारकर साफ करवाने लगी। किन्तु उसका वह सजा सजाया स्कूलका घर सूना ही रह गया ! पड़ोसके घरकी लड़कियांके अनिनावा यह नुनकर कि हमारे धन्की मुड़- कियों को सुन्तलाकर नहाने के बहाने ब्राह्म-सनाजने ले जानेका प्रस्ताव हो रहा है, अत्यन्त शुद्ध हो उठे। जब उन्होंने सुना कि परेश बाबूको लड़कियों के साथ हमारे घरकी बडू बेटियाँ छत पर जाकर बात-चीत करती हैं तब उन्होंने उन सबों को ऊपर जाने की एक दम मनाही कर दी और ब्राह्म पड़ोसी की लड़कियों के साधु सङ्कल्प पर असा नारा का प्रयोग किया। बेचारी लावण्यने नित्य नियमानुसार हाथ में कंघी लेकर अपनी छत पर जाकर देखा कि पास वाली छतों पर नवयुवतिय के बदले श्राज बूढ़ी बूढ़ी स्त्रियाँ आ जुटी हैं । ललिता इतने पर भी बाज न आई। उसने कहा ---बहुतेरी गरीब ब्राह्म-बालिकाओं का फीसवाले स्कूलोंमें जाकर पढ़ना कटिन है, इसलिए उनको मुफ्त पढ़ाना स्वीकार करने से उनका विशेष उपकार हो सकता है। इस विचारमे वह विद्यार्थिनियोंकी खोज में स्वयं लग पड़ी और सुधीरको भी लगा दिया। फार्म नं० २१