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गोरा

M ३२६ ] गोरा दिन बढ़ती जा रही है, समाज के लोग चारों ओर निन्दा कर रहे हैं तब लाचार होकर उन्हें सावधान कर देना पड़ा। लज्जासे ललितका सिर मुक गया । उसका कलेजा धड़कने लगा ! उसने पूछा- क्या पिताजी ने विनय बाबू को यहाँ आने से मना कर दिया है ? वरदासुन्दरी - वे इन बातोंको थोड़े ही सोचते हैं ? यदि सोचते तो शुरूसे ही ऐसा क्यों होने पाता ? ललिता [-क्या हारान बाबू यहाँ आ सकेंगे! वरदासुन्दरीने भौहें तानकर कहा-सुनो तो इसकी बात ! हारान बाब क्यों नहीं आवेंगे? ललिता-तो विनय बाबू क्यो नहीं आवैगे ! वरदासुन्दरीने फिर वही हाथ में लेकर कहा--ललिता, मैं तुमसे नहीं जीत सकती। अभी जाओ, मेरा जी मत जलायो । मुझे बहुत काम है । ललिता जब दोपहरको सुचरिताके घर स्कूलकी तैयारी करने गई थी सब वह अच्छा अवसर पा वरदासुन्दरीने विनयको बुलाकर अपना वक्तव्य कह सुनाया था। उसने सोचा था कि ललिताको इसकी खबर ही न मिलेगी। जब उसकी कलई इस तरह खुल पड़ी तब वह नई विपत्ति की आशावा करके डर गई। उसने समझा कि अब इस विरोधकी शान्ति शीघ्र न होगी और सहज ही इसका निबटेरा भी न होगा। अपने व्यवहार ज्ञान- हीन पतिके ऊपर उसका सब क्रोध उबल पड़ा। ऐसे अबोध पुरुषके साथ घरका कान चलाना स्त्रीके लिए बड़ी विडम्बना है। ललिता अपने अशांत चित्तको लेकर वायुवेगसे चल पड़ी। नीचे के कमरेमें बैठे परेश वाबू चिट्ठी लिख रहे थे । वहाँ जाकर एकदम वह पूछ बैठी-~-पिताजी,क्या विनय बाब हम लोगोंके साथ मिलनेके पात्र नहीं हैं ? प्रश्न सुनते ही परेश बाबू घरकी अवस्था को समझ गये। उनके परके लोगोंके विषयमें उनके समाजमें जो आन्दोलन मच रहा है, वह परेश बाबू 1 ।