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गोरा [ ३२६ समय मिल लू नौंविदाकर उसके आगे अपमानका बोझ सिर पर लेकर, पूर्व परिचयक सम्वन्ध सूत्र को अच्छी तरह तोड़कर हो जाऊँ। किन्तु किस तरह इसमें सफलता होगी, इसका एक भी उपाय उस न मुभा । इसन्न बह ललिताके मुंहकी ओर देखे बिना ही चुपचाप हाथ जोड़कर चला गया । घरस बाहर निकल कर उसका मन इस तरह छटपटाने लगा जैसे पानीसे बाहर सूखी धरती पर मछली आ पड़ी हो। वह जिधर जाता है उधर ही अपने को निराधार याता है। माना उसके जीवन का सहारा किसी ने छीन लिया हो ! उसे सारा संसार अन्धकारमात्र दीखता है। विनय स्वप्नावस्थित की भाँति चलने-चलते अानन्दमयीके घर आ पहुँचा ! किन्तु वहाँ उसे न पाया । तब वह छतों के ऊपर उस सूने कोठेमें गया जिसमें गोरा सोता था। उनके ऊपर कपड़े सूखने को डाले गये थे। तीसरे पहरको, धूप कम होने पर जब आनन्दमयी उन्हें उठाने आई तब गारा के कोठेमें विनय का देखकर वह अचम्म में आ गई । बानन्दमर्याने झट उसके पास आकर उसकी पीठ पर हाथ रखकर कहा-विनय, तुम्हारा मुंह त्या मुख गया है ! तुम ऐसे उदास क्यों दीखत हो ? टीक क कहाँ बा। विनय उठ बैठा और बोला- माँ, मैं जब पहले परंश बाबूक पर जाने-आने लगा तब गोराको मेरा बहाँ जाना-बाना अन्धान जगता था, वह मुझ पर क्रोध करता था उसके क्रोधको मैं तब अचुक नमस्ता था, किन्तु उसका कोष अयुत नहीं था, मर्र, हा मुलगा प्रानन्दनवान नबुर कर कहा- तो नरः चदुर लड़का है इसीसे मैं तुझसे की कुछ नहीं कहती । अब बीच में तुमने अपने भीतर मूर्खता का कौन सा लक्षण देखा ? विनयने कहा-~-माँ; हमारा समाज और समाजाने एकदम जुदा है, इस बात को मैं कभी न सोचता था । उन सबोंक बन्धुत्व व्यवहार और भेट मुलाकातसे मुझे बड़ा आनन्द होता था और कुछ उपकार भी जान पड़ता था। इसीसे मैं उनके पास एकदम खिंच गया था। किन्तु इस