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गोरा

गोरा ३३० पातको मैंने एक बार भी कमी न सोचा था कि वह घनिष्टता किसी दिन मेरे लिए विशेष चिन्ताका कारण होगी। आनन्दमयी---तुम्हारी बात सुनकर अब भी तो मेरे मनमें किसी चिन्ता का उदय होता नहीं। विनयने कहा-माँ, तुम नहीं जानती कि मैं समाजमें उन सबोंके प्रति एक भारी अशान्ति फैलाने का अपराधी हुआ हूँ | लोगोंने इस प्रकार निन्दा करना प्रारम्भ कर दिया है कि मैं अब वहाँ जाने योग्य नहीं हूँ- आनन्दमयी बोली-गोरा एक बात बार-बार मुझसे कहता था, वह मुझे खूब याद है। वह कहता था कि जहाँ भीतर किसी जगह कोई अन्याय छिपा है, वहाँ बाहर शान्ति रहने पर भी अमङ्गल की आग सुलगती रहती है और वह किसी दिन भभककर अवश्य हानि पहुँचाती है। यदि उनके समाजमें अशान्ति फैली है तो तुम्हें अनुताप करनेकी कोई श्रावश्यकता नहीं ! देग्वना, इसमे अच्छा ही फल होगा। हाँ तुम्हें अपना व्यवहार शुद्ध रखना चाहिए । हसी वातका तो विनयके मनमें भारी खटका था। मेरा अपना न्यवहार शुद्ध है या नहीं, यह ठीक ठीक उसकी समझमें न आता था । इसका फैसला वह आप न कर सकता था। ललिता जब अन्य समाज की है, उसके साथ विवाह होना जब सम्भव नहीं है तब उस पर विनयका अनु- राग होना ही, एक गुप्त पापकी तरह, उसे सन्ताप दे रहा था और इस पाप के दुस्तर प्रायश्चित्तका जो समय उपस्थित हुआ है, इस बातको सोचकर वह और भी व्याकुल हो रहा था। विनय सहसा बोल बोल उठा मां, शशिमुस्त्रीके साथ जो मेरे विवाह का प्रस्ताव हुआ था वह हो जाने ही से अच्छा होता । जहाँ मेरा अधिकार है वहीं किसी तरह मेरा बद्ध हो रहना उचित है। आनन्दमयीने हंसकर कहा-समझ गई; तुम शशिमुखी को अपने घरकी बहू बनाकर नहीं, किन्तु उसे घरकी साँकल बनाकर रखना चाहते हो। N ,