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३३४ ]
गोरा

३३४ ] गोरा सब बातें जान बूझकर अपनी इच्छा से ऐसा काम करने को उद्यत हुई है, यह देख सुचरिता डर गई। ललिता के मनमें विद्रोहका भाव जाग उठा है, यह वह समझ गई । किन्तु क्या वेचारे विनयको इस विद्रोह में सम्मि- लित करना उचित है ? सुचरिता अपने मनके आवेशको न रोक सहम बाल उठी..--इस विषय में एक दफे पिताजी से सलाह कर लेना आवश्यक है। सुचरिताने जो चतुराईके साथ इस प्रस्तावमें बाधा डाली, यह विनय समझ गया । इससे उसके मनकी अाशंका और भी बढ़ गई। यह बात भली भाँति जान पड़ी कि जो सङ्कट हुआ है उसे सुचरिता जानती है और ललितासे भी वह छिया नहीं है, तब ललिता क्यों इस तरह करती है। कुछ भी स्पष्ट ज्ञान नहीं होता। ललिताने कहा-पिता जी से तो पूछना ही होगा । विनय बाबू राजी हो तो पित्ता जी से पूछ लूँगी । वे कभी आपत्ति न करेंगे। उन्हें भी. हमारे इस विद्यालयमें योग देना होगा। आनन्दभवीकी ओर देखकर कहा-आपको भी हम न छोड़ेंगी। अानन्दमयी ने हँसकर कहा--मैं तुम्हारे स्कूलमें झाड़-बुहार आऊँगी, इससे अधिक काम मेरे द्वारा और क्या होगा। विनय ने कहा -यही यथोष्ट होगा। स्कूल एकबारगी स्वच्छ हो जायगा। सुचरिता और ललिता के चले जाने पर विनय एकाएक पैदल ही ईडन गार्डन की ओर चल दिया । महिम ने आनन्दमयी के पास आकर कहा-विनय मेरे उस प्रस्ताव पर बहुत कुछ राजी हो गया है ! अब जहाँ तक हो सके शीव काम कर लेना अच्छा है। आनन्दमयी ने वित्मित होकर कहा क्या कहते हो ! विनय फिर कत्र राजी हुअा ? मुझसे तो उसने कुछ नहीं कहा। महिम-आब ही मेरे साथ उनको बातचीत हो गई है। वह कहता है, गोरा के आने पर मुहू स्थिर किया जायगा ।