पृष्ठ:गोरा.pdf/३३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ३३५
गोरा

गोरा [ ३३५. आनन्दमयी ने सिर हिलाकर कहा-महिम, मैं तुमसे कहती हूँ, तुमने ठीक नहीं समझा। महिम-मेरी बुद्धि चाहे जितनी मोव हो,किन्तु सीधी बात सम- झने के योग्य मेरी उमर जरूर हुई है, यह तुम निश्चय जानो। श्रानन्दमयी-मैं जानती हूँ, तुम मुझ पर क्रोध करोगे, किन्तु इस वात में जरूर कोई बखेड़ा खड़ा होगा । महिम ने मुँह लटकाकर कहा–बखेड़ा खड़ा करने से ही खड़ा हो जाता है। आनन्दमयी-महिम, तुम जो कहोगे सब सहूँगी, किन्तु जिस बात से कोई उपद्रव होगा मैं उसमें शामिल न हो सकेंगी। यह केवल तुम्हारी ही भलाई के लिए है। महिम ने रुष्ट होकर कहा-मेरी भलाई की सोचने का भार यदि मेरे ही ऊपर रहने दो तो तुम्हें कोई बात सोचने-समझने की आव- श्यकता न पड़े और मेरा भी इसी में भला होगा। बल्कि शशिमुखी का व्याह हो जाने पर फिर जहाँ तक तुमको हो सके मेरी भलाई की चिन्ता --कहो क्या कहती हो? आनन्दमयी ने इसका कुछ उत्तर न दे एक लम्बी साँस ली । महिम पाकेट से पान का डिब्बा निकालकर उसमें से एक बीड़ा पान ले मुँह में रख चवाते-चवाते चला गया ।