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गोरा

गोरा [३३७ बादमीसे (उसका नाम नहीं बताऊँगी) जो खबर मिली, उसे सुनकर तो जैसे सिर पर गाज गिर पड़ी ! मैं तो सोच भी नहीं सकती कि ऐसा सम्भव हो सकता है। किन्तु जिन्होंने लिखा है, उन पर अविश्वास करना भी कठिन है। किसी हिन्दू युवकके साथ तुम्हारे विवाहकी सम्भावना उपस्थित है ? यह बात अगर सत्य हो, तो...इत्यादि-इत्यादि। क्रोधसे ललिताके सारे शरीरमें जैसे आग लग गई। वह घड़ी भर भी रूक न सकी । उसी दम चिट्ठी के उत्तर में लिखा-खबर सच है कि नहीं, इसके लिये तुम्हारा प्रश्न करनाही मुझे आश्चर्य की बात जान पड़ती है। ब्रह्म समाजके श्रादमीने तुमको जो खबर दी है, उसकी सचाई भी क्या जाँचनी होगी ? इतना अविश्वाश उसके उपरान्त, किसी हिन्दू युवकके साथ मेरे विवाहकी सम्भावना होनेकी खबर पाकर तुम्हारे सिरपर गाज गिर पड़ी है, किन्तु मैं तुमसे निश्चय कह सकती हूँ ब्राह्म समाजमें भी ऐसे कुछ सुप्रसिद्ध साधु-युवक हैं, जिनके साथ विवाहकी आशंका ब्रजपात श्री के तुल्य भयकंर है और मैं ऐसे भी दो एक हिन्दू युवकोंको जानती हूँ जिनके साथ व्याह होना हर एक ब्राक्ष-कुमारीके लिए गौरव और सौमाग्य की बात है । इससे अधिक और एक भी बात मैं तुमसे महना नहीं चाहती।" इधर उस दिन-दिन भरके लिये परेश बाबूका काम काज बन्द हो मया । वह चुपचाप बैठे बैठे बहुत देर तक सोचते रहे। उसके बाद सोचते हुए धीरे-धीरे सुचरिताके घर में जाकर उपस्थित हुए । परेश बाबू का चिन्तित मुख देखकर सुचरिताका हृदय व्यथित हो उठा ! काहे के लिए उन्हें चिन्ता है, सो भी वह जानती है, और इसी चिन्ता को लेकर मह कई दिन से दुःखी हो रही है। परेश बाबू सुचरिता के साथ एक एकान्त स्थानमें बैठे, और बोले- बेटी, ललिताके सम्बन्धमें चिन्ता का समय उपस्थित हुआ है ! सुचरिता ने परेश बाबूके मुख पर अपनी करणापूर्ण दृष्टि स्थापित करके कहा-जानती हूँ बाबू जी । का० नं०२२