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गोरा

गोरा [ ३२९ सुचरिता उसी दम उनके पैर छूकर कहने लगी- ना! ना! यह क्या कहते हैं आप बाबू जी ! परेश बाबूने कहा-सम्प्रदाय ऐसी चीज है कि वह सबसे सहन बात को ही बिलकुल भुला देती है कि मनुष्य सब मनुष्य ही हैं। मनुष्य स्वयं ब्राह्म, हिन्दू, मुसलमान अादि समाजके गढ़े हुए नामोंकी बातको विश्व सत्य की अपेक्षा बड़ा बना डालकर एक गोरखधन्धा तैयार कर लेता है। अब तक मैं वृथा ही उसमें भटकता हुश्रा मर रहा था। जरा देर चुप रह कर फिर कहने लगे-ललिता अपनी कन्या पाठ- शाला का विचार किसी तरह छोड़नेको तैयार नहीं है। वह इस सम्बन्ध में विनय की सहायता लेने के लिए मेरी सम्मति चाहती है। सुचरिता -ना बाबू जी, अभी कुछ दिन उसे रहने दीलिए! परेश बाबू–क्यों अमी रहने क्यों दिया जाय । सुचरिता–नहीं तो माँ बहुत नाराज हो उठेगी। परेश बाबूने सोच कर देखा, यह बात तो ठीक है।