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गोरा

गोरा > इसी समय सहसा ांधी की तरह उस स्थान में प्रवेश करके ललिता ने कहा-बाबू जी, यह देखो, ब्राह्म-समाजसे आजकल इस तरह की गुम- नाम चिट्ठियाँ आती है। परेश बाबूने ललितासे चिट्ठी लेकर पढ़ी। विनयके साथ ललिताका म्याह गुत रूपसे पक्का हो गया है, यह निश्चित मानकर पत्र लेखक ने तरह-तरह की मर्त्सना, धमकी और उपदेशकी बातोंसे यह चिट्ठी पूर्ण की है। उसीके साथ यह सब चर्चा भी थी कि विनय का मतलब अच्छा नहीं है, वह दो दिन बाद ही अपनी ब्राह्म समाजी स्त्री को त्याग करके फिर हिन्दूके घरमें व्याह कर लेगा...इत्यादि । परेशके पढ़ चुकने पर हारान बाबूने वह चिट्ठी लेकर पढ़ी। उसके बाद कहा--ललिता यह चिट्ठी पढ़कर तो तुम्हें क्रोध आता है, किन्तु ऐसी चिट्ठी लिखने का कारण क्या तुमने अापही नहीं खड़ा कर दिया है। अच्छा, बताओ तुमने अपने हाथसे यह चिट्ठी किस तरह लिखी है। वह दूसरी चिट्ठी.देखकर दम भर ललिता स्तन्ध हो कर खड़ी रही। उसके बाद बोली-जान पड़ता है, शायद शैल के साथ इस सम्बन्ध में आपकी चिट्टी पत्री चल रही है ? हारानने इसका स्पष्ट उत्तर न देकर कहा-ब्राझ समाज के प्रति कर्तव्य स्मरण करके शैल तुम्हारी यह चिट्ठी मेज देने के लिये बाध्य ललिता कठिन भाव से तन कर खड़ी हो कर बोली-अब ब्राहा का कहना चाहता है, कहे ! हारानने कहा-विनय बाबूके और. तुम्हारे सम्बन्धमें . यह जो अफवाह फैल रही है, उस पर यद्यपि. मैं किसी तरह विश्वास नहीं कर सकता; किन्तु तो मी, तुम्हारे मुख से. मैं उसका स्पष्ट प्रतिवाद सुनना सहता हूँ। ललिताको दाना आखें अङ्गारकी तरह जलने लगी। उसने एकः