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गोरा

गोरा { ३४३ कुर्सी की पीठ कांपते हुये हाथोंसे जोरसे पकड़ कर कहा- क्यों, किसी तरह मी विश्वाश नहीं कर सकते ? परेश बाबूने ललिताकी पीठ पर हाथ फेर कर कहा-ललिता, इस समय तुम्हारा मन स्थिर नहीं है। यह बात-चीत पीछे मेरे साथ होगी- अमी रहने दो हारान ने कहा-परेश बाबू , अाप बात को दवा देने की चेष्टा न कीजिये। ललिता फिर प्रज्वलित हो कर बोली-दवा देने की चेष्टा बापू जी करेंगे । बाबूजी आप लोगों की तरह समय के प्रकाशसे नहीं डरते---सत्य को बाबूजी ब्राह्म-समाजसे भी बड़ा जानते हैं। मैं आपसे स्पष्ट कहे देती हूँ, मैं विनय बाबूके साथ व्याह को कुछ भी असम्भव या अन्याय नहीं समझती? हारान कह उठे-किन्तु क्या यह पञ्च हो गया है कि वह ब्राह्म-धर्म की दीक्षा ग्रहण करेंगे। ललिताने कहा कुछ भी नहीं हुआ। और ऐसी ही क्या बात है कि दीक्षा लेनी ही होगी। वरदासुन्दरीने अब तक कोई बात नहीं कही थी। उनकी इच्छा थी कि आज हारान बाबकी ही जीत हो, और अपना अपराध स्वीकार करके परेश बाबूको पश्चाताप करना पड़े। मगर अब उनसे रहा नहीं गया। बोल उठी.ललिता, तू पागल हो गई है क्या ! कहती क्या है ! ललिताने कहा- नहीं माँ, यह पागलपनकी बात नहीं जो कुछ मैंने कहा है ? वह खूब सोच समझकर कहा है ? मुझे लोग इस तरह चारों ओरसे बाँधने पावेंगे, तो मैं उसे कभी सह नहीं सकेंगी। मैं हारान भाब , वगैरहके इस समाजके बन्धन से अपनेको मुक्त करूँगी। हारानने कहा-उच्छृङ्खलता को तुम मुक्त कहती हो । ललिताना, नीचताके आक्रमणसे, असत्यकी गुलामीसे, छुटकारे ।