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गोरा

३४] गोरा को ही मैं मुक्त कहती हूँ ! जहाँ पर मैं कोई अन्याय कोई अधर्म नहीं देखती, वहाँ ब्राह्म-समाज क्यों मुझे स्पर्श करेगा, क्यों बाधा देगा ? हारान बाबूने कहा-परेश बाबू, यह देखिये ! मैं जानता था, कि अन्तको ऐसी ही एक घटना घटित होगी । मुझसे जहाँ तक हो सका, मैंने आप लोगों को सावधान करने की चेष्टा की लेकिन कुछ फल । नहीं हुआ ! ललिता ने कहा--देखिये हारान बाबू , आपको भी सावधान कर देने का एक विषय है। आपकी अपेक्षा जो लोग सभी बातों में बड़े हैं, उन्हें सावधान कर देने का अहङ्कार आप अपने मन में न रखिएगा। इतना कहकर ललिता वहाँ से निकलकर चली गई। वरदासुन्दरी ने कहा- यह सब क्या हो रहा है ! अब क्या करना चाहिए उसी की सलाह करो! परेश -जो कर्तव्य है, उसी का पालन करना होगा। किन्तु इस तरह हङ्गामे के साथ सलाह करने से तो कर्तव्यका निश्चय नहीं होता। मुझे जरा माफ करना होगा। इस सम्बन्धमें मुझसे कुछ न कहों । मैं जरा अकेले बैठना चाहता हूँ! .