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गोरा

गोरा होंगे, यह मैं तुमसे निश्वय कहती हूँ। उन्होंने तो कभी हम लोगों को अंजीरमें बाँधना नहीं चाहा । उनके मतके साथ जब किसी दिन कुछ हमारी राय नहीं मिलती है, तब क्या उन्होंने जरा भी क्रोध या नाराजगी बाहिर की है.-क्या कमी ब्राह्म-समाजके नाम की दुहाई देखकर हमारा मुँह बन्द कर देने की चेयकी है ? इसी के लिये माँ कितनी ही बार कितना ही नाराज हुई हैं; किन्तु बाबू जी को अगर कुछ भय था, तो यही की कहीं हम खुद सोचने-विचारने का साहस न खो बैठे। इस तरह करके जब उन्होंने मनुष्य बनाया है, तब अन्तको क्या वह हारान बाबू जैसे समाजके जेल-दोगा के हाथमें हमको सौंप देंगे ? सुचरिताने कहा - अच्छा, मान लिया, चाबू जीने कुक बाधा न बाली । उसके बाद क्या किया जायगा, बोलो ? ललिताने कहा-तुम लोग अगर कुछ न करोगे, तो मैं खुद.... सुचरिता व्यस्त हो उठ कर बोली-ना, ना, तुझे कुछ भी न करना होगा बहन ! मैं इसका कुछ उपाय करती हूँ 1 सुचरिता परेश बाबूके पास जानेको प्रस्तुत हो रही थी, इसी समय परेश वायू खुद शामको उसके पास आकर उपस्थित हुए। परेश बाबूने कोमल स्वरसे कहा-~-राधे, सब सुना तो होगा। सुचरिता - हाँ बाबूजी, सव सुन चुकी हूँ। मगर आप इतनी चिन्ता स्खों करते हैं? परेश-मैं तो और कुछ नहीं सोचता, मुझे चिन्ता यही है कि ज्ञलिताने जो तूफान उठाकर खड़ा कर दिया है, उसके सारे आघातोंको बह सह सकेगी! सुचरिताने कहा -समाजकी ओरसे होने वाला कोई उत्पीड़न ललिता को किसी दिन भी परास्त नहीं कर सकेगा, यह मैं आपसे जोर देकर कह सकती हूँ। [-मैं यह बात खूब निश्चय करके जानना चाहता हूँ कि परेशने कहा-