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गोरा

गोरा [ Ye की । वह हारानको कुर्सी पर विटाकर चुपचाप उनके बोलनेकी प्रतीक्षा करने लगा। हारान ने कहा -- विनय ताबू आप तो हिन्दू है न ? विनय-हाँ, हिन्दू तो हूँ ही। हारान-मेरे इस प्रश्न से नाराज न होइएगा :अनेक समय ऐसा होता है कि हम लोग चारों ओर की अवस्था पर विचार किये विना अंधे होकर चलते हैं- इससे संसारमें दुखकी सृष्टि होती है। ऐसी जगह पर यदि कोई ये सब प्रश्न उटावे कि हम क्या है ? हमारी सीमा कहाँ है ? हमारे आचरण का फल कहाँ तक पहुँचाता है, तो वह अप्रिय सल्य होने पर भी प्रश्नकर्ता को अपना मित्र ही समझियेगा । विनयने हँसने की चेष्य करके कहा-वृथा श्राप इतनी भूमिका बाँध रहे हैं ! अप्रिय प्रश्न से पागल हो उठकर किसी प्रकार अत्याचार करने का स्वभाव ही मेरा नहीं है । आप वेखटके अपनेको निरापद समझकर मुझसे सब तरहके प्रश्न कर सकते हैं। झरान -मैं आपके ऊपर किसी इच्छाकृत अपराधका दोषारोपण नहीं करना चाहता । किन्तु विवेचना की त्रुटिका फल भी विषमय हो उठ सकता है, यह बात आपसे अगर न भी कही जाय तो, उसे आप खुद समझ सकते हैं। विनयने मन-ही-मन विरक्त होकर कहा-जिसके कहने की आवश्यकता नहीं है, उसे भले ही आप न कहें अब असल बात जो हो, वहीं कहिये । हारान-आप जब हिन्दू-समाज में हैं, और उस समाज को छोड़ना भी जब श्रापके लिए असम्भव है, तब परेश बापू के परिवार के भीतर क्या आपका इस तरह आना-जाना उचित जिससे समाजमें उनकी लड़- कियों के सम्बन्ध में कोई अप्रिय बात उठ सके ? विनयने कुछ देर गम्भीर होकर और चुप रहकर कहा-देखिए हारान बा समाजसे आदमी किस घटनासे कौन बात पैदा कर लेंगे यह बहुत कुछ इनके अपने सामाव पर ही निर्भर है । उसकी सारी जिम्मेदारी अपने