पृष्ठ:गोरा.pdf/३५१

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[५.] जिस समय विनयके घर पर हारान बाबुका आगमन हुआ, टीक उसी समय अविनाशने अानन्दमयीके पास जाकर खबर दी कि विनयके साथ ललिताका व्याह पक्का हो गया। आनन्दमयीने कहा- यह बात कभी सच नहीं है। अविनाश-क्यों सच नहीं है ? विनयके लिए क्या यह असंभव है ? आनन्द -सो मैं नहीं जानती, लेकिन इतनी बड़ी बात विनय कमी मुझसे छिपा न रखता। अविनाश ने बारम्बार यह कहा कि उसने यह खबर ब्राह्म-समाजके एक खास आदमीसे पाई है, और वह पूर्ण विश्वास योग्य है । विनयका ऐसा शोचनीय परिणाम अवश्य ही होगा-इस बात को वह बहुत पहलेसे ही जानता था, यहाँ तक कि गोराको मी उसने इस बारे में सावधान कर दिया था, यही आनन्दमयीके निकट घोषणा करके अवनाश बड़े आनन्द से नीचेकी दालानमें महिमको भी यह शुभ समाचार सुना गया। आज विनय जब आया, तब उसका मुँह देख कर ही आनन्दमयी समझ गई कि उसके अन्तःकरणमें एक विशेष दुःख उत्पन्न हुआ है । उसे भोजन कराकर, अपनी कोठरीमें बुला ले जाकर आनन्दमयी ने बिठलाया, और पूछा--विनय, तुझे क्या हुआ है, बता तो ? विनय-माँ, यह चिट्ठी पढ़ कर देखो। अानन्दमयीके पत्र पढ़ चुकने पर विनयने कहा--अब सबेरे हासन बाबू मेरे देरेमें आये थे। वह मुझे बहुत डॉट फटकार गये हैं आनन्द.-क्यों? विनय-वह कहते हैं, मेरा आचरण उन लोगोंके समानमें परेश बाजूकी लड़कियोंकी निन्दाका कारण बन गया है। ३५१ .