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गोरा

३५२] गोरा आनन्दमयी-लोग जो कहते हैं कि ललिताके साथ तेरा ब्याह ठीक हो गया है, इसमें तो मुझे निन्दाका विषय कुछ भी नहीं देख पड़ता ! विनय-विवाह अगर सम्भव होता तो बेशक कुछ निन्दाकी बात न होती। किन्तु जहाँ जिसकी कोई सम्भावना नहीं है, वहाँ इस तरहकी अफवाह उड़ाना कितना बड़ा अन्याय है। खास कर ललिताके बारेमें इस तरहकी अपवाह उड़ाना अत्यन्त नीचता है-बड़ी ही बुजदिली है ! आनन्द० -तुमसे अगर कुछ पौरुष हो, तो इस निन्दा और अपमानके हाथसे तू अनायास ही ललिताकी रक्षा कर सकता है। विनयने विस्मित होकर कहा-किस तरह माँ ? आनन्दमयी-किस तरह क्या ? ललितासे व्याह करके ! बिनय० क्या कहती हो माँ ! अपने विनयको क्या तुम समझती हो, सो तो मेरी कुछ समझ नहीं आता ! तुम सोचती हो, विनय अगर एक बार केवल कह दे कि मैं व्याह करूँगा, तो जगत्में उसके ऊपर बात ही नहीं उठ सकती-केवल मेरे इशारेकी अपेक्षा में ही सब लोग नजर लगाये बैठे हैं! अानन्द-मुझे तो इतनी बातें सोचनेकी जरूरत नहीं देखती। अपनी तरफसे जो कुछ कर सकता है उतना ही करनेसे तू अपने फर्जसे बुट्टी पा जायगा । तू कह सकता है कि मैं व्याह करनेको राजी हूँ। विनय-मैं अगर ऐसी असंगत बात कहूँगा, तो क्या वह ललिताके लिए अपमानजनक न होगी? यानन्द०-उसे तु असंगत क्यों कहता है ! तुम दोनोंके व्याहकी अफवाह जब उड़ चुकी है, तब निश्चय ही वह सङ्गत समझ कर ही उड़ाई गई है । मैं तुझसे कहती हूँ कि तुझे कुछ सङ्कोच न करना होगा। विनय-- लेकिन माँ गोराका ख्याल भी तो करना है। प्रानन्दमयीने दृढ़ स्वरमें कहा-ना, मैया इस मामले में गोराके स्यालकी जरूरत ही नहीं है। मैं जानती हूँ वह नाराज होगा, क्रोध