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गोरा

गोरा [ ३५३ करेगा, और मैं नहीं चाहती कि तुझ पर वह क्रोध करें । लेकिन तू क्या करेगा ! ललिताके ऊपर अगर तुझे श्रद्धा हो, तो उसके सम्बन्धमें सदाके लिए समाजमें एक अपमान रख छोड़ना तुमसे हो ही नहीं सकता--तू ऐसा होने ही नहीं दे सकता । विनयने कहा-माँ, तुमको जितना ही देखता हूँ, उतना ही विस्मित हो जाता हूँ ! तुम्हारा मन एकदम इस तरह साफ कैसे हुआ ! तुम्हें क्या पैरों से नहीं चलना पड़ता-ईश्वरने क्या तुमको पङ्ख दे रक्खे हैं ? तुम संसार पथ में चलने में कहीं नहीं अटकती ! अानन्दमयी ने हँस कर कहा- ईश्वर ने मेरे अटकने की कोई सामग्री नहीं रक्खी ! मेरी सारी राह एकदम साफ कर दी है ? विनय-लेकिन, माँ, मैं मुंहसे चाहे जो कहूँ, मेरा मन तो अटक जाता है ! इतना समझता-बुझता हूँ, पढ़ता सुनता हूँ, बहस करता हूँ, मगर अकस्मात अचानक देख पाता हूँ कि मेरा मन बिल्कुल मुर्ख ही रह गया है। इसी समय महिम ने वहाँ पैर रस्त्रते ही विनयसे ललिताके सम्बन्ध में ऐसे अत्यन्त उजड्डपन और रूखेपन से प्रश्न करना शुरू कर दिया कि विनयका हृदय सङ्कोचसे पीड़ित हो उठा। वह आत्म-दमन करके सिर झुकाकर चुपचाप कुछ उत्तर न देकर बैठा रहा । तब महिम सब पक्षोंके प्रति तीक्ष्ण आघात करके अत्यन्त अपमान करने वाली कुछ बातें कहकर यहाँ से चला गया । विनय चारों ओर इस तरह लॉछना की मूर्ति देखकर सन्नाटे में श्राकर बैठ रहा। आनन्दमयीने कहा----जानता है विनय, अब तेरा क्या कर्तव्य है? विनयने सिर उठाकर उनके मुँह की ओर देखा । आनन्मदी ने कहा-तुझे उचित है कि तू एक बार परेश वाचूके पास जा उनके साथ मातचीत करनेसे ही सब साफ हो जायगा । फा० नं० २३