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गोरा [ ३५० श्रानन्द-इसका तो कुछ एक उपाय करना ही होगा। इन सब बातों को सुनने के बाद से विनय के मन में तो रत्ती भर भी शान्ति नहीं है । वह तो अपने को ही अपराधी माने बैठा है सुचरिता ने अपना लाल हो रहा मुख जरा नीचे करके कहा- अच्छा, आप क्या समझती हैं कि विनय वाबू...! अानन्दमयी ने सङ्कोच पीड़ित सुचरिता को अपनी बात पूरी करते न देखकर कहा—देखो बेटी, में तुमसे कहती हूं ललिता के लिये विनयको जो करने को कहोगी, वह वही विला उज्र करेगा। विनय को मैं उसके बचपनने देखती अाती हूं वह अगर एक बार आत्म समर्पण कर दे, तो फिर कुछ भी अपने हाथमें नहीं रख सकता सर्वस ही समर्पण कर देता है। इसी कारण वुझे बहुत भव रहता है कि कहीं उसका ऐसी जगह मन जाय, जहाँ से उसे कुछ भी फेर पाने की कोई आशा न की जा सकती हो। सुचरिता के मनके ऊपर से एक बोझ हट गया । उसने कहा- ललिता के सम्मतिके लिये आपको कुछ मी चिन्ता न करनी होगी--में उसका सब हाल जानती हूं। किन्तु विनय बाबू क्या अपना समाज छोड़ने को राजी होंगे। आनन्द-समाज शायद उसे त्याग कर सकता है, किन्तु वह पहले से ही गले पड़कर क्यो समाज त्याग करने जायगा बेटी, इसका क्या कुछ प्रयोजन है? नुचरिता--आप क्या कहती हैं,माँ ? विनय वायू हिन्दू समाजमें रह कर ब्राह्म घरकी लड़की व्याहेंगे ? अानन्द-~-वह अगर ऐसा करनेको राजी हो तो उसमें तुम लोगोको क्या आपत्ति है ? सुचरिता को अत्यन्त गड़बड़झाला जान पड़ा उसने कहा- मेरी तो समझ में नहीं आता कि ऐसा किस तरह समझना होगा ? 2