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गोरा

संक गोरा आनन्दमयीने इसके उत्तरमें कहा था--ना, ना, इसकी तो कुछ चरूरत नहीं देखती। विनयने पूछा-अगर वे लोग इसके लिये जिद्द करें-बोर डाले ! आनन्दमयीने देर तक चुप रह कर कहा--ना, यहाँ पर जोर नहीं डाला जा सकेगा-जोर नहीं चलेगा। सुचरिता आनन्दमयीकी इस अलोचनामें शरीर नहीं हुई-बह चुपके बैठी रही । उन्होंने समझा सुचरिता का मन अब भी अनुमोदन नहीं करता। अानन्दमयी मनमें सोचने लगी---मेरा मन जो समाजके सब संस्कायें को छोड़ सका है, सो इसी गोराके स्नेहसे। तो क्या गौराके ऊपर सुचरिता का मन नहीं पाया अगर मन आता, तो वह छोटी सी बात ही इतनी बड़ी न हो उठती। आनन्दमयीका मन जरा उदास हो गया । गोराके जेलखानेसे छूटनेमै और केवल दो दिन बाकी है। वह अपने मममें सोच रही थी कि उसके लिये एक सुख का क्षेत्र प्रस्तुत हो रहा है । अबकी चाहे जिस तरह हो गोरा को बन्धनमें बाँधना ही होगा, नहीं तो वह कहाँ, किस विपत्तिमें जा पड़ेगा, इसका कुछ ठिकाना नहीं | किन्तु गोराको बाँध लेना तो ऐसी वैसी लड़की का काम नहीं है। इधर हिन्दू समाज की किसी लड़कीके साथ गोराका व्याह करना मी अन्याय होगा । इसी कारण इतने दिन तक अनेक कन्याके व्याह की चिन्तासे पीड़ित पिताओं की अर्जी उन्होंने एक दम नामंजूर कर दी थी। गोरा कहता है कि मैं व्याह न करूँगा। उन्होंने माँ होकर एक दिन भी इसका प्रतिवाद नहीं किया। इससे लोगोंको बड़ा आश्चर्य होता था। अबक्री गोराके दो एक लक्षण देखकर वह मन-ही-मन उत्फुल्ल हो उठी थी। इसी कारण सुचरिताके मौन-विरोध ने उन्हें बड़ी चोट पहुँचाई । किन्तु सहज ही हाल छोड़ने वाली स्त्री नहीं है ! मनमें कहा- अच्छा देखा जायगा। ।